For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है

कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥

तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥

 

भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,

मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥

 

क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,

सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥

 

कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,

कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥

 

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

 

हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,

मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥

 

हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,

जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है॥

  •  डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

Views: 997

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज लाली बटाला on August 30, 2013 at 11:06am
khoob
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:19pm

कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,

कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥

सत्य 

बधाई सर जी 

 

Comment by अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’ on August 27, 2012 at 9:30pm

हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,

जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है॥

बोलता हुआ शे’र है ’सूरज’ जी, बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 5, 2012 at 3:16pm

वाह डा. साहब गज़ब ढा दिया आपने , बहुत-२ बधाई.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 12:21pm

डॉ.सूर्या बाली जी, बढ़िया गज़ल

भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,

मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥

क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,

सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥

कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,

कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,

मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥

इन अश'आरों ने गजब ही ढा दिया, जिंदगी का फलसफा भी, हकीकत भी, भई वाह !!!!!!!!!

न तोड़ो दिल किसी का यार दिन हैं चार जीवन के

कभी अनजानी गलती से भी नाता टूट जाता है ||

नहीं जुड़ता, अगर जुड़ता भी है तो गाँठ पड़ती है

हो कितना भी बुलंदी पर , सितारा टूट जाता है ||

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2012 at 11:48pm

बाली जी

          सादर नमस्कार,

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

हर पक्ष को बखूबी पेश किया है. बहुत बहुत बधाई.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 4, 2012 at 7:33pm

वाह डॉ. साहब.. क्या ख़ूब कलाम पेश किया आपने! अदब का शानदार मुज़ाहिरा रहा यह! बधाई आपको!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 4, 2012 at 8:43am

//कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥

तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

 

हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,

मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥//

आदरणीय डॉ० सूर्या बाली “सूरज” साहब, मतले से लेकर मकते तक के अशआर ने हृदय को स्पर्श किया है ..............बहुत बहुत बधाई स्वीकारें ! सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2012 at 1:18am

बहुत ही ग़ज़ब का मतला है डॉक्टर साहब. किसी लम्हे में सदियों के होने का भरोसा होना जिस आत्मीयता की निशानी है उसके दरकने के गिर्द आपके कई भाव दिलकश बन पड़े हैं.

इसी उठान पर ये शेर है --

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

कुछ क्षणों की रौद्रता को किस गहराई से महसूस किया है आपने और मौजूं बना डाला है, वाह !

बहुत-बहुत बधाई इस संवेदना के लिये.. .  बहुत खूब !!

Comment by satish mapatpuri on August 4, 2012 at 1:11am

क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,

सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥

सुभान अल्लाह ......... बेहतरीन ..... खुबसूरत ख्याल .... दाद कुबूल फरमाएं डॉ .सूरज साहेब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service