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है फतवा खाप पंचायत का सुनकर प्यार सदमे में

कोई भी हो नहीं देखी गई सरकार सदमे में।

मगर जनता है जो देखी गयी हर बार सदमे में॥

 

मुहब्बत करने वाले हैं ज़माने के निशाने पर,

है फतवा खाप पंचायत का सुनकर प्यार सदमे में॥

 

सुना मनरेगा में जबसे हुआ घपला करोडों का,

तभी से जी रहे हैं सैकड़ों परिवार सदमे में॥

 

है देखा हाल जब से देश ने राजा औ मंत्री का,

दबाकर दाँत में उंगली खड़े सरदार सदमे में॥

 

हुई नक़ली दवाएँ हैं बरामद शहर में जबसे,

दवाख़ाना, मसीहा, नर्स, औ बीमार सदमे में॥

 

अमीरे शहर से करके मुहब्बत क्या मिला हमको,

ग़रीबे-शहर की बेटी पड़ी लाचार सदमे में॥

 

ये दिल्ली है जो करती है सियासत के सभी ड्रामे,

टहलते देखे हैं मैंने कई किरदार सदमे में॥

 

किसानों को बचा पाये नहीं गर सूदखोरों से,

वज़ीरो !  डूब जाएंगे कई परिवार सदमे में॥

 

बचाकर कैसे रक्खें घर को इस मंहगाई में “सूरज”,

हमारी ज़िंदगी के हैं दरो-दीवार सदमे में॥

                  डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:20pm

कोई भी हो नहीं देखी गई सरकार सदमे में।

मगर जनता है जो देखी गयी हर बार सदमे में॥

 बहुत खूब कहा 

बधाई 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 1, 2012 at 11:58pm
आदरणीय सूरज जी ...चमकता दमकता रहे ये सूरज यों ही ...और नयी रौशनी और प्राण हम पाते रहें बदले में प्रेम लुटाते रहें जन्म दिन मनाते रहें ..प्रभु आप के सारे मनभावन सपनों को इस सावन में ही पूरे कर दे 
साथ ही .........
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई  आप को और हमारे सभी प्रिय मित्रों को .
.प्रभु से प्रार्थना है कि ये भाई बहन का पर्व यों ही सदा सदा के लिए अमर रहे प्रेम उमड़ता रहे और बहनों की सुरक्षा के लिए हम सब के मन में जोश द्विगुणित होता रहे ...
आइये बहनों को सदा खुश रखें हंसे हंसाएं प्रेम बरसायें ...तो आनंद और आये ...
जय श्री राधे 
आप सब का 'भ्रमर'५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 29, 2012 at 7:58pm

हुई नक़ली दवाएँ हैं बरामद शहर में जबसे,

दवाख़ाना, मसीहा, नर्स, औ बीमार सदमे में॥

जान तो बचाइये डॉ साहब जन गण की ..जहां तहां यही घटनाएँ लखनऊ में अभी कुछ दिन पहले एक के बाद एक शिकार ... अपने इसी तरह के  प्यारे प्रयास से समाज को रोशन करते रहें ..काश लोगों की दबी नशें उभरें खून दौड़े कुछ सोचने विचारने की ताकत आये ...बहुत सुन्दर रचना .........सब सदमे में ही हैं कैसे उबरें ???
भ्रमर ५ 

 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 23, 2012 at 1:02am

//कोई भी हो नहीं देखी गई सरकार सदमे में।

मगर जनता है जो देखी गयी हर बार सदमे में॥

 

ये दिल्ली है जो करती है सियासत के सभी ड्रामे,

टहलते देखे हैं मैंने कई किरदार सदमे में॥

किसानों को बचा पाये नहीं गर सूदखोरों से,

वज़ीरो !  डूब जाएंगे कई परिवार सदमे में॥//

हालात-ए-हाजरा पर बहुत ही उम्दा अशआर कहे हैं आपने ! एक डॉक्टर का संवेदनशील हृदय ही ऐसा कह सकता है .......बहुत बहुत मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं दोस्त ...सादर 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2012 at 11:49pm

ये दिल्ली है जो करती है सियासत के सभी ड्रामे,
टहलते देखे हैं मैंने कई किरदार सदमे में॥

किसानों को बचा पाये नहीं गर सूदखोरों से,
वज़ीरो ! डूब जाएंगे कई परिवार सदमे में॥

बहुत सधे हुए अश’आर कहे हैं आपने.  आपकी संवेदनशीलता को हार्दिक बधाई, डॉक्टर साहब.

Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 11:22pm

क्या कहने
क्या कहने
क्या कहने
___हाय हाय हाय हाय
___गज़ब कर दिया डॉ सूर्या बाली सूरज जी
_____हाय हाय हाय हाय
_____एक से बढ़ कर एक नगीना पिरो दिया है माला में ...बांचने वाला मालामाल हो गया

किसानों को बचा पाये नहीं गर सूदखोरों से,

वज़ीरो !  डूब जाएंगे कई परिवार सदमे में॥

__आपकी जय हो जय हो जय हो !

Comment by वीनस केसरी on July 21, 2012 at 11:33pm

वाह डाक्टर साहब,
आपकी इस ग़ज़ल ने दिल जीत लिया
पकी हुई पुख्ता ग़ज़ल जो शायर की पहचान बनने और बनाने के लायक है
वाह वाह वा

हर शेर बरवज़्न और लाजवाब .... 
ऐसे मुद्दे जो हर समय सामयिक लगें उन पर शेर कह लेना और अच्छे शेर कह लेना कठिन होता है
मगर आपने कर दिखाया 

क्या कहने ....

Comment by AVINASH S BAGDE on July 21, 2012 at 6:28pm

मुहब्बत करने वाले हैं ज़माने के निशाने पर,

है फतवा खाप पंचायत का सुनकर प्यार सदमे में॥mudde ko sahi uthaya hai Bali sahab aapane.

ये दिल्ली है जो करती है सियासत के सभी ड्रामे,...

टहलते देखे हैं मैंने कई किरदार सदमे में॥...nai soch...

 

अमीरे शहर से करके मुहब्बत क्या मिला हमको,

ग़रीबे-शहर की बेटी पड़ी लाचार सदमे में॥...wah!

खूबसूरत सामायिक ग़ज़ल 

वाह !

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 1:14pm

सुन्दर ग़ज़ल कही है सर जी
दाद क़ुबूल कीजिये
हर शेर पे देश की समस्या मुखरित हो रही है साधुवाद आपको

कुछ आशआर में वज्न की समस्या सी दिख रही है
हो सकता है मुझे उन शब्दों का उर्दू उच्चारण सही न आ रहा हो

इस खूबसूरत समसामायिक ग़ज़ल के लिए दाद क़ुबूल कीजिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 21, 2012 at 12:10pm

वाह SIR वाह क्या खूब, अति सुन्दर....

कृपया ध्यान दे...

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