For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

1.
ख़्वाब फिर महके हैं सावन की रात में।
जवाँ दिल बहके ..हैं सावन की रात में।
बारिश की बूंदों में .उल्फ़त की आतिश-
जज़्बात दहके हैं ..सावन ..की रात में।

2.
सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं  आती ।
ऐसे   रूठे वो   कि . रूठ  गयी  साँसें -
दिल के शहर में अब सहर नहीं आती।

3.
खुशी के पर्दे  में  क्यूँ   नमी .बनी   रहती है।
हर जानिब इक गम की चादर तनी रहती है।
पैबंद   सी   लगती   है  हंसी  अब  होठों पर -
चश्मे साहिल पर गम की स्याही जमी रहती।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 996

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on August 30, 2018 at 1:06pm

आद0सुशील सरना जी सादर अभिवादन। मुक्तक का प्रयास बेहतर है, इसके लिए बधाई। पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।आद0 समर साहब की बातों पर गौर कीजयेगा और मुक्तक का कुछ और अध्ययन। बेहतर के लिए शुभकामनाएं

Comment by Samar kabeer on August 30, 2018 at 11:53am

जनाब सुशील सरना जी आदाब,मुक्तक का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

पहला मुक्तक 22 मात्रा

दूसरा  21 मात्रा

तीसरा 23 मात्रा ।

लेकिन मात्रा की गिन्ती पूरी होने से लय नहीं आ रही है,इस पर विचार करें ।

"सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं  आती'

पहली पंक्ति में 'उनकी' को "उसकी" करना उचित होगा ।

बहतर होगा मंच पर मौजूद मुक्तक का अध्यन करें ।

Comment by narendrasinh chauhan on August 29, 2018 at 6:43pm
खुब सुन्दर रचनाए
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 29, 2018 at 12:23pm

जी सुन्दर संशोधन

Comment by Sushil Sarna on August 28, 2018 at 9:04pm

आदरणीय Naveen Mani Tripathi जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा एवं सुझाव का दिल से शुक्रिया। ये संशोधन कैसा रहेगा : दिल जवाँ बहके ..हैं सावन की रात में.... या फिर आज दिल बहके हैं सावन की रात में।

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2018 at 6:45pm

बहुत अच्छा मुक्त है । 

ख्वाब की मात्रा 21 है जबकि दूसरी पंक्ति जवाँ से प्रारम्भ कर रहे हैं जिसकी मात्रा 12 है । 

अगर 2 1 से दूसरी पंक्ति का आगाज हो तो गेयता बढ़ जायेगी ।

शुभ शुभ 

Comment by Sushil Sarna on August 28, 2018 at 6:05pm

आदरणीय  बसंत कुमार शर्मा जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 28, 2018 at 5:40pm

वाह बेहतरीन मुक्तक 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
17 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी  वाह !! सुंदर सरल सुझाव "
26 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने समय दिया आपने जिन त्रुटियों को…"
28 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service