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आज फिर ....

नहीं जला
चूल्हा
उसके घर
आज फिर

घर से निकला
उदासी में लिपटा
काम की तलाश में
एक साया
आज फिर

लौट आया
रोज की तरह
खाली हाथ
आज फिर

पेट में
क्षुधा की ज्वाला
सड़क पर
काम की ज्वाला
नौकरियों में
आरक्षण की ज्वाला
ज्ञान गौण
प्रश्न मौन
उलझन ही उलझन
माथे पर
चिंताओं को समेंटे
यथार्थ से निराकृत
खाली हाथ
लौट आया
आज फिर

पत्नी की आँखों में
सवाल
बच्चों की आँखों में
सवाल
माँ की आँखों में
बस
अपने बच्चे की
उबलती

बेबसी
जो
बह निकली
रोज की तरह
आज
फि........ र

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 13, 2018 at 6:34pm

आदरणीय बृजेश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 13, 2018 at 6:33pm

आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहिब, आदाब। ... सृजन के भावों को आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 13, 2018 at 6:33pm


आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , प्रस्तुति आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से उपकृत हुई , हार्दिक आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 13, 2018 at 6:32pm

बेहतरीन बेहतरीन..शानदार भाव चित्रण किया है आदरणीय..

Comment by Sushil Sarna on April 13, 2018 at 6:32pm

आदरणीय  Shyam Narain Verma  जी सृजन के भावों को  सहमति देती प्रशंसा से मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 13, 2018 at 6:31pm

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी सृजन के भावों को आत्मीय सहमति देती प्रशंसा से मान देने का दिल से आभार।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2018 at 6:27pm

जनाब सुशील सरना साहिब ,हालाते हाज़रा पर बहुत ही सुन्दर कविता हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by Samar kabeer on April 11, 2018 at 6:01pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,आज के हालात पर मार्मिक कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Shyam Narain Verma on April 11, 2018 at 1:32pm

इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई | सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 11, 2018 at 7:36am

आ. सुशिल जी,
अच्छी कविता हुई  है जिसके लिये आप बधाई के पात्र हैं,
आपका पात्र रोज़ काम खोजने जा  है और नौकरी में आरक्षण सिर्फ सरकारी नौकरी तक सिमित है .. जो एक दिन में आरक्षण वाले को भी नहीं मिलती ..
सादर 

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