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ग़ज़ल...परेशां रहा हूँ मैं अहल-ए-सितम से-बृजेश कुमार 'ब्रज'

122 122 122 122
गम-ए-दिल उठाऊँ,अज़ीमत नहीं है
मगर बच निकलने की सूरत नहीं है

सुनो बख़्श दो मुझको वादों वफ़ा से
यहाँ अब किसी की जरुरत नहीं है

परेशां रहा हूँ मैं अहल-ए-सितम से
तुम्हारी भी क़ुर्बत की नीयत नहीं है

ओ महताब तू है तो ग़ज़लें हैं रौशन
वगरना सुख़नवर की अज़्मत नहीं है

सरेआम  'ब्रज' की ग़ज़ल गुनगुनाना
ये है और क्या गर मुहब्बत नहीं है

अज़ीमत-इरादा
अहल-ए-सितम-तानाशाह
क़ुर्बत-नजदीकियां
महताब-चन्दा
सुख़नवर-लेखक
अज़्मत-इज्जत
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 9, 2018 at 8:47pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शर्मा जी...

Comment by Ajay Tiwari on April 9, 2018 at 6:59pm

आदरणीय बृजेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 9, 2018 at 5:49pm
आदरणीय ब्रिजेश जी बढ़िया ग़ज़ल हुए है इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 5:39pm

सरे शाम 'ब्रज' की ग़ज़ल गुनगुनाना
ये है और क्या गर मुहब्बत नहीं है

वाह वह क्या कहने , शानदर गजल हुई आदरणीय 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 9:26pm

आदरणीय सतविंद्र जी शुक्रिया..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 9:25pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश जी..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 9:24pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर सर...हाँ गलती तो हुई है...इसे यूँ करता हूँ..सरे शाम 'ब्रज' की ग़ज़ल गुनगुनाना..

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 8, 2018 at 7:15pm

बेहतरीन गजल

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 8, 2018 at 6:50pm

आ. बृजेश जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है, बहुत  बहुत बधाई 

Comment by Samar kabeer on April 8, 2018 at 6:36pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

मक़्ते में 'सुबह' ग़लत है,सही शब्द है "सुब्ह"जिसका वज़्न 21 है, और आपने 12 ले लिया है,देखिये।

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