For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...परेशां रहा हूँ मैं अहल-ए-सितम से-बृजेश कुमार 'ब्रज'

122 122 122 122
गम-ए-दिल उठाऊँ,अज़ीमत नहीं है
मगर बच निकलने की सूरत नहीं है

सुनो बख़्श दो मुझको वादों वफ़ा से
यहाँ अब किसी की जरुरत नहीं है

परेशां रहा हूँ मैं अहल-ए-सितम से
तुम्हारी भी क़ुर्बत की नीयत नहीं है

ओ महताब तू है तो ग़ज़लें हैं रौशन
वगरना सुख़नवर की अज़्मत नहीं है

सरेआम  'ब्रज' की ग़ज़ल गुनगुनाना
ये है और क्या गर मुहब्बत नहीं है

अज़ीमत-इरादा
अहल-ए-सितम-तानाशाह
क़ुर्बत-नजदीकियां
महताब-चन्दा
सुख़नवर-लेखक
अज़्मत-इज्जत
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 9, 2018 at 8:47pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शर्मा जी...

Comment by Ajay Tiwari on April 9, 2018 at 6:59pm

आदरणीय बृजेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 9, 2018 at 5:49pm
आदरणीय ब्रिजेश जी बढ़िया ग़ज़ल हुए है इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 5:39pm

सरे शाम 'ब्रज' की ग़ज़ल गुनगुनाना
ये है और क्या गर मुहब्बत नहीं है

वाह वह क्या कहने , शानदर गजल हुई आदरणीय 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 9:26pm

आदरणीय सतविंद्र जी शुक्रिया..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 9:25pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश जी..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 9:24pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर सर...हाँ गलती तो हुई है...इसे यूँ करता हूँ..सरे शाम 'ब्रज' की ग़ज़ल गुनगुनाना..

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 8, 2018 at 7:15pm

बेहतरीन गजल

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 8, 2018 at 6:50pm

आ. बृजेश जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है, बहुत  बहुत बधाई 

Comment by Samar kabeer on April 8, 2018 at 6:36pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

मक़्ते में 'सुबह' ग़लत है,सही शब्द है "सुब्ह"जिसका वज़्न 21 है, और आपने 12 ले लिया है,देखिये।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service