For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रिय शेखर,
दोस्त! तुम मेरे सब से अच्छे दोस्त रहे हो, अब तुमसे क्या छुपाऊं? मैं इन दिनों बहुत परेशान हूँ, तुम्हें तो पता है मैं क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करता आया हूँ| मेरी और तुम्हारी जॉब एक साथ ही लगी थी, कितने खुश थे न हम दोनों! अच्छा पैकेज पाकर ,मैं हवा में उड़ने लगा,तुमने कई बार मुझे टोका भी; पर मैं अपनी ही उड़ान भरता रहा, मैं यह भूल गया था कि प्राइवेट सेक्टर में जॉब; बरक़रार रहे जरुरी नहीं ,और ऐसा ही हुआ।सात महीनों से जॉब के लिए दर-दर भटक रहा हूँ, और दूसरी तरफ़ बैंक के क़र्ज़ तले दबता जा रहा हूँ।
मेरे आगे-पीछे घूमने वालों ने भी मेरा साथ छोड़ दिया है, मुझे कोई रास्ता नहीं नज़र आ रहा है.......
तुम्हारा,
मोहन।
" ओह!" ई मेल पढ़ कर एक गहरी ठंडी साँस ले कर शेखर ने दोनों हाथों में सर थाम लिया कि उसी पल उसकी पत्नी कंचन इठलाती हूई भीतर आई , " अरे शेखर! कोहिनूर पर साड़ियों की सेल लगी है और ' तनिष्क ' पर भी एक स्कीम है। चलो जल्दी से तैयार हो जाओ।"
शेखर ने कोई जवाब नहीं दिया।क्षण भर बाद पर्स से क्रेडिट कार्ड निकाल कर भावशून्य नजरों से उसे देखा , फिर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये और मुस्कुरा कर बोला ," पर मुझे रास्ता सूझ गया है मेरे दोस्त ! "

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on January 23, 2018 at 7:30pm

बढ़िया लघुकथा है आ. कल्पना जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. शीर्षक विशेष रूप से पसन्द आया. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 22, 2018 at 9:01pm

जब से ये क्रेडिट कार्ड चले हैं लोग बेहिसाब खर्च करने लगे हैं अंततः कर्जबन्द होकर अपना सुख चैन सब खत्म कर देते हैं ऐसे लोगों कि आँखें खोलने वाली लघु कथा हुई है प्रिय कल्पना जी बहुत शानदार हार्दिक बधाई 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 22, 2018 at 11:52am

मुहतर्मा कल्पना साहिबा ,आज कल के हालात पर सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 20, 2018 at 10:47pm

बेहतरीन उम्दा सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद आदरणीया कल्पना भट्ट जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 20, 2018 at 3:22pm

बड़ी ही खूबसूरती से आपने एक रोजमर्रा की मुसीबत की तरफ ध्यान खींचा है आदरणीया..बधाई

Comment by Mohammed Arif on January 20, 2018 at 8:02am

आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,

  •                              बहुत ही प्रासंगिक कथा । बाज़ारवादी ठगी ताक़तें बहुत ही शातिर है । इनसे सावधान रहने की आवश्यकता है । हार्दिक बधाई  स्वीकार करें ।

Comment by Nita Kasar on January 19, 2018 at 8:14pm

आँखे खोलने वाली कथा,आज यही देखने में आता है लोकलुभावन दुनिया की हकीकत से अवगत कराती कथा के लिये बधाई  आद० कल्पना बहना ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 19, 2018 at 6:28pm

आदरणीय सुश्री कल्पना भट्ट जी , आपने एक आँखे खोलने वाली लघु - कथा लिखी है। यह एक सच्चाई है कि बाज़ारीकरण का यह एक लुभावना सत्य है कि इस प्रकार के प्रलोभनों में फंसने वाले अंततः दुखी ही होते हैं। बधाई, इस साहसिक प्रस्तुति पर , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
6 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service