For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चूना लगा (लघुकथा)

"आप मुझसे कब तक प्रेम करेंगे?" समुद्र तट पर पति के साथ प्यार भरे लम्हों में बहुत भावुक होते हुए पत्नी ने कहा।
पति ने उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद निकाल कर समुद्र के पानी में डाला और बोला - "इस आँसू की बूंद को जब तक तुम खोजकर नहीं निकालतीं, मैं तब तक तुमसे प्रेम करूँगा ..!"
यह देख समुद्र की भी आँखों में पानी आ गया और उसने कहा - 
"कहाँ से सीखते हो रे तुम लोग ... पत्नी को इतना चूना लगाना ?" 
"चूना! नाचूं या चूना लगाऊं? तुझे क्या मतलब? तू चूना नहीं लगाता क्या? तू नहीं नाचता क्या?" -पति ने समुद्र की लहर को लतयाते हुए कहा। 
पत्नी अपने पति में उठती सुनामी-भावनाओं से सहम सी गई और बोली- "मैंने कब कहा कि तुम मेरे लिए नाचो? मुझे तो कभी भी ऐसा नहीं लगा कि तुम मुझे चूना लगा रहे हो। दोगले समुद्र की बातों से मुझे कोई मतलब नहीं! मैं तो भारतीय नारी हूं। सुनामी हो या साधारण धरा, उसमें समा जाना हमारी परम्परा है प्रिय!" यह कहकर ख़ून के घूंट पी कर वह पति की छाती में समा गई। पति की छाती अब कुछ नमी सी महसूस कर रही थी।
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on January 6, 2018 at 5:34pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा ,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Nita Kasar on January 4, 2018 at 3:24pm

मन को पढ़ना जानती है कहती कम पर समझती है,पत्नि तारीफ से पुलकित हो जाती है सुंदर कथा के लिये बधाई आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:59pm

आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बेहतरीन लघुकथा,नारी के सच्चे भारतीय स्वरूप को उल्लेखित करती। बहुत बहुत बधाई आपको।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 4, 2018 at 12:57pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बहुत मार्मिक प्रस्तुति।

Comment by Mohammed Arif on January 4, 2018 at 12:32pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                        बहुत ही प्रभावोत्पादक कथा । अगर कथानाक प्रारंभिक आरोह पर ही छोड़ दिया तो और ज़ियादा भाव प्रवणता को बनाए रखती । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 4, 2018 at 10:31am

वाह वाह बहुत सुंदर लघुकथा । इस व्यस्तता भरे दौर में मुहब्बत पर अच्छा तंज है । बधाई बन्धु ।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 4, 2018 at 10:21am
वाह जनाब शहज़ाद उस्मानी साहब,
क्या खूब उदाहरण दिया है...
आप मुझसे कब तक प्रेम करेंगे?" समुद्र तट पर पति के साथ प्यार भरे लम्हों में बहुत भावुक होते हुए पत्नी ने कहा।
पति ने उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद निकाल कर समुद्र के पानी में डाला और बोला - "इस आँसू की बूंद को जब तक तुम खोजकर नहीं निकालतीं, मैं तब तक तुमसे प्रेम करूँगा ..!" मुबारक़बाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
57 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service