For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहर - 2122 2122 2122 212

एक तितली का चमन मे आना जाना हो गया .....
देख ..उसको एक गुल यारों दिवाना हो गया ....

उनकी हर तस्वीर मेरे दिल मे धुँधली हो गई
उनको .. देखें दोस्तों जो इक ज़माना हो गया ....

देख मुझको वो मुसलसल मुस्कुराती ही रही
क्या.... सही मेरी निग़ाहों का निशाना हो गया ....

एक बच्चा खा रहा था कूड़े से जूठन , उसे
देखकर ....मेरे लबों से दूर दाना हो गया ..

जी , शहद जितनी मुझे हर पल मिठास आने लगी
अपना रिश्ता लगता है यारों पुराना हो गया .....

मैंने .....तो बस चाह की उनके हसीं दीदार की ,
रुख से उनका उस ही पल पर्दा हटाना हो गया ....

अपने छोटे मुख से जब उसने कहीं बातें बड़ी ,
हर कुई महफ़िल में फिर उसका दिवाना हो गया ....

मैंने .... जब प्रमाण माँगा उनके होने का यहाँ ,
पत्थरों का फिर निग़ाहों को बहाना हो गया .....

मौलिक और अप्रकाशित ...

पंकजोम " प्रेम ".

Views: 917

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by पंकजोम " प्रेम " on November 21, 2017 at 7:14pm
आपके आशिर्वाद का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ , आ0 दादा समर कबीर जी .....
Comment by पंकजोम " प्रेम " on November 21, 2017 at 7:14pm
बहुत बहुत शुक्रिया आ0 दादा आशुतोष जी ...आ0 दादा रामानुज जी .... आ0 दादा मुहम्मद आरिफ जी ....
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 26, 2017 at 4:34pm

आदरणीय पंकजोम जी पहली बार आपकी रचना को पढने का अवसर प्राप्त हुआ आपकी रचना के माध्यम से आदरणीय समर सर और निलेश भाई जी की प्रतिक्रियाओं से बहुत सारी बारीकियाँ सीखने को मिलीं . इस  प्रयास पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 24, 2017 at 11:43am

मुझे बहुत अधिक समझ तो नहीं पर कुछ शेर बह्र एवं मापनी में नजर नहीं आ रहे | एक बार गुणीजनों की टिपण्णी अनुसार पुनह अवलोकन करना उचित होगा | प्रयास के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Mohammed Arif on October 24, 2017 at 8:06am
आदरणीय पंकजोम जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । गुणीजनों की बातों से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ उनकी बातों का संज्ञान लें ।
Comment by Samar kabeer on October 23, 2017 at 9:29pm
जनाब पंक्जोम"प्रेम" जी आदाब,कुछ बातें जनाब निलेश जी ने समझाईं कुछ मैं बताता हूँ ।
'देख मुझको वो मुसलसल मुस्कुराती ही रही'
ग़ज़ल कहते समय ये भी ध्यान रखें कि शाइरी में महबूब को स्त्रीलिंग की तरह नहीं बरता जाता,इस मिसरे को यूँ कीजिये:-
'देख मुझको वो मुसलसल मुस्कुराते ही रहे'

'जी,शहद जितनी मुझे हर पल मिठास आने लगी
अपना रिश्ता लगता है यारों पुराना हो गया'
इस शैर पर बहुत कुछ है कहने के लिये, सबसे पहली बात 'शहद'शब्द का वज़्न आपने 12लिया है,जबकि इसका सही वज़्न है21,दूसरी बात ये कि मिठास आती नहीं बल्कि 'लगती'है,तीसरी बात,इस शैर का भाव् बेतुका है, और दोनों मिसरों में रब्त भी नहीं है,आपको शहद जैसी मिठास आने लगी तो इससे ये कैसे पता चला कि रिश्ता पुराना हो गया है,मेरे ख़याल से इस शैर को हटा देना बहतर होगा ।

'मैंने तो बस चाह की उनके हसीं दीदार की
रुख़ से उनका उस ही पल पर्दा हटाना हो गया'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'हसीं'शब्द भर्ती का है, क्योंकि महबूब का दीदार तो हसीं ही होता है,सानी मिसरे में 'उस ही'शब्द भर्ती के हैं,इस शैर को यूँ किया जा सकता है:-
'देखने की तुझको ख़्वाहिश दिल में बस जागी ही थी
और इधर रुख़ से तेरा पर्दा हटाना हो गया'
आख़री शैर के दोनों मिसरों में भी रब्त नहीं है,देखियेगा,बाक़ी शुभ शुभ
Comment by नाथ सोनांचली on October 23, 2017 at 5:49am
आद0 पँकजोम जी सादर अभिवादन, बेहतरीन प्रयास ग़ज़ल का । शेष गुनिजनो कह चुके है। बधाई सादर।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 23, 2017 at 5:42am
आदरणीय खूबसूरत ग़ज़ल कहने क लिये बधाई।ग़ज़ल में कुछ जाने अनजाने होना स्वाभाविक है। विद्वजन की टिप्पणी पर गौर करना आवश्यक है।ओपेन बुक्स आन लाइन एक पाठशाला है। जहाँ सब इसी तरह सीखते हैं। मैं भी सीखता हूँ।
Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 27, 2017 at 10:34am
बहुत बहुत शुक्रिया आ0 दादा नंद किशोर दुबे जी ...... आशिर्वाद बनाएं रखना
Comment by नन्दकिशोर दुबे on September 24, 2017 at 4:40pm
सुन्दर रचना ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
2 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
5 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service