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" उसको कहते किसान है यारों "

" उसको कहते किसान है यारों "

बहर - 2122 1212 22/112


सबसे जो मूल्यवान है यारों ....
उसको कहते किसान है यारों ....

मौला महफ़ूज आप सब को रखें
आप .....भारत कि शान है यारों ..

फेक दी जिसने बेटी कचरे में
माँ वो कितनी महान है यारों ...

जिंदगी से कहीं ज़ियादा , क्यों
प्यारा लगता श्मशान है यारों ...

झूठ देखों यहाँ पे चीखे और
सच... बना बेजुबान है यारों ...

तीर बस प्यार का चले जिस से
आप...... ऐसी कमान है यारों ....

जिंदगी इक हुबाब है जब , किस
बात ......का फ़िर गुमान है यारों ..

पंकजोम " प्रेम "
( मौलिक और अप्रकाशित "

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Comment by पंकजोम " प्रेम " on October 22, 2017 at 7:01pm
जी आदरणीय mahendra जी .... मैं ध्यान रखूंगा .... शुक्रगुज़ार हूँ , आपके आशिर्वाद का ....
Comment by Mahendra Kumar on October 6, 2017 at 9:51pm

आ. पंकजोम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आ. समर सर की बातों से मैं भी सहमत हूँ. उनका संज्ञान लीजिए. सादर.

Comment by Samar kabeer on October 1, 2017 at 9:06pm
जनाब पंक्जोम'प्रेम'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल अभी कुछ और समय चाहती है,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'उसको कहते किसान है यारों'
इस मिसरे में रदीफ़ 'है यारों' की जगह 'हैं यारों'हो रही है,दूसरी बात जब दोस्तों से ख़िताब किया जाता है तो 'यारों' नहीं "यारो"कहते हैं ।

'मौला महफ़ूज़ आप सबको रखें
आप भारत कि शान है यारों'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'रखें' को 'रखे' होना चाहिए,और सानी मिसरे में 'कि' को 'की'होना चाहिए,और यहाँ भी रदीफ़ 'है'कि जगह 'हैं'हो रही है ।
'प्यार लगता श्मशान है यारों'
ये मिसरा लय में नहीं है ।
पांचवें शैर के ऊला में 'देखों'-'देखो' ।
'आप ऐसी कमान है यारों'
इस मिसरे में भी 'है''हैं' हो रहा है ।
आख़री शैर शिल्प का शिकार है ।

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