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ग़ज़ल....धीरे धीरे रीत गया - बृजेश कुमार 'ब्रज'

22 22 22 22 22 22 22 2
यादों के गलियारे होकर जब मैं आज अतीत गया
लाख सँभाला आँखों ने पर धीरे धीरे रीत गया

नाम पुकारा कुछ ने मेरा कुछ के अश्क़ छलक आये
कुछ तस्वीरें मुस्काईं तो गूँज कहीं संगीत गया

ख्वाब सुहाने कुछ बचपन के टूट गये कुछ रूठ गये
कैसे जी को समझाऊँ मैं क्या गुजरी क्या बीत गया

ऐसा क्या माँगा था उनसे ऐसी क्या मज़बूरी थी
बीच भँवर क्यों हाथ छुड़ाकर बेदर्दी मनमीत गया

खेल रचा क्या भावों का हाथों की चन्द लकीरों ने
हार गया 'ब्रज' हर लम्हा वो बाज़ी हर इक जीत गया
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 3:07pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on September 17, 2017 at 12:27pm
बृजेश जी सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई,
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 17, 2017 at 11:35am
आ0 ब्रजेश कुमार ब्रज जी इस सुंदर ग़ज़ल की हृदय से बधाई।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 17, 2017 at 9:09am

सुकोमल भावों से सजी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है, बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी 

Comment by नाथ सोनांचली on September 17, 2017 at 4:04am
आदरणीय बृजेश जी सादर अभिवादन, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by Afroz 'sahr' on September 16, 2017 at 10:20pm
आदरणीय ब्रजेश जी बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है!शेर दर शेर दाद कुबूल करें!
Comment by Mohammed Arif on September 16, 2017 at 10:05pm
आदरणीय बृजेश जी आदब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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