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दुनिया के मर्ज़ (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"भाई, मैंने तो अब सोच लिया है कि अब नहीं रहना संयुक्त परिवार में!"

"अबे, तुम्हारी बीवी की ये पहली प्रेगनेंसी है। कुछ ही महीनों में डिलेवरी होगी। यही तो सही समय है सबके साथ रहने का!"

"साथ रहने में कोई हर्ज़ नहीं, लेकिन हर रोज़ की टोका-टाकी और दकियानूसी से तंग आ चुका हूं। मैं नहीं चाहता कि गर्भ में पल रहे बच्चे को शुरू से ही धार्मिक चीज़ें सुनवाई जायें। रीति-रिवाज़ों की छाप उस पर पड़े!"

"क्या तुम्हारी बीवी भी!"

"कहां यार, वह तो भारतीय नारी है न।! धार्मिक ग्रंथों में घुसी रहती है या धार्मिक फिल्में देखती रहती है! सास-ससुर की बात तो मानना ही पड़ेगी न!"

"तो तुम क्या सुनवाना और दिखवाना चाहते हो?"

"मैं इंग्लिश सुनवाना और इंग्लिश मूवी दिखवाना चाहता हूं, जन्म से ही मेरी सन्तान मॉडर्न सोच वाली होनी चाहिए। पहली बार बोले तो 'हाय मॉम' ही बोले!"

"तो क्या इंग्लिश की कोचिंग दिलवा रहे हो बच्चे को छटवें-सातवें महीने से ही!"

"तो इसमें हर्ज़ ही क्या है? मैं तो ईअर फ़ोन से इंग्लिश पोइम्स सुनवा रहा हूं!"

"डाक्टरों से ज़रूर पूछ लेना! कुछ गड़बड़-सड़बड़ न हो जाए ओवरस्मार्ट बनने पर!"

"मुझे सिखा रहे हो! हर काम मैं सलीके से ही करता हूं।"

"अपने उलझे क़िताबी ज्ञान से या इंटरनेट में उलझ कर!" इस बार दोस्त ने ठहाका मारकर कहा।

"दुनिया के साथ चलने में हर्ज़ ही क्या है?"

"दुनिया के साथ चलने में नहीं, दुनिया के मर्ज़ पालने में हर्ज़ है, समझे!" इस बार दोस्त ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 27, 2017 at 9:33pm
रचना पटल पर समय देकर हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय नीता कसार जी व आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 26, 2017 at 10:04pm
वाह बहुत सही विश्लेषण किया है हार्दिक बधाई आदरणीय..आजकल बच्चों को माँ बाप और डा. पालते हैं..दादी दादा और बड़ों की राय अब मायने नहीं रखती।
Comment by Nita Kasar on July 25, 2017 at 9:07pm
शानदार संदेशप्रद कथा के लिया बधाई आद० उस्मानी जी ।जैसी नींव होगी वैसी ही इमारत बनेगी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 7:35pm
मेरी इस लघुकथा के अनुमोदन व मुझे प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब, Dr. Ashutosh Mishra जी, जनाब विजय निकोरे साहब, और आदरणीय मनीषा सक्सेना जी। हम सभी की रचनाओं पर इसी तरह टिप्पणी कर हमें प्रोत्साहित करते रहिएगा।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 7:31pm
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर रचना के अनुमोदन, मर्म तक जाने व मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब व मुहतरम जनाब समर कबीर साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 7:28pm
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पटल पर गौरवमयी उपस्थिति, रचना के अनुमोदन व मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब रवि प्रभाकर साहब। आप सभी के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मार्गदर्शन में ही यह अभ्यास कर पा रहा हूं।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 25, 2017 at 4:35pm

आदरणीय शेख उस्मानी जी आपकी हर लघु कथा में एक नयी सोच होती है इस रचना के माध्यम से आपने जो सार्थक सन्देश दिया है अनुकरणीय है / इस रचना के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by vijay nikore on July 25, 2017 at 3:57pm

 अच्छी सीख देने में आपकी लघुकथा बहुत ही सफ़ल हुई है। हार्दिक बधाई, आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by Manisha Saxena on July 25, 2017 at 11:13am

पञ्च लाइन तो बढ़िया है ही और ये लाइन भी सुन्दर लिखी है अपने उलझी किताबी ज्ञान ----------|बधाई |

Comment by Ravi Prabhakar on July 24, 2017 at 1:00pm

बढ़ीया लघुकथा है उस्‍मानी भाई जी । / "दुनिया के साथ चलने में नहीं, दुनिया के मर्ज़ पालने में हर्ज़ है, समझे!"/ बहुत तीक्ष्‍ण पंक्‍ित है । सादर शुभकामनाएं ।

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