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जब नज़र से उतर गया कोई

2122/1212/22
.
जब नज़र से उतर गया कोई,
यूँ लगा मुझ में मर गया कोई.
.
इल्म वालों की छाँव जब भी मिली
मेरे अंदर सँवर गया कोई.
.
उन के हाथों रची हिना का रँग
मेरी आँखों में भर गया कोई.
.
बेवफ़ाई!! ये लफ्ज़ ठीक नहीं,
यूँ कहें!!! बस, मुकर गया कोई.

मौत को “नूर” मौत क्यूँ मानें
मानिए ... अपने घर गया कोई.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2017 at 9:58pm

शुक्रिया आ. सतविन्द्र जी 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 19, 2017 at 8:59pm
आदरणीय नीलेश जी,वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् वाह्ह्ह्,सादर बधाई स्वीकारें!
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2017 at 5:29pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर,
आप   की दाद से अभिभूत हूँ 
आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 19, 2017 at 12:04pm

आ० नीलेश जी आपकी ग़ज़लों का मैं क्यों प्रशंसक हूँ यह कहने की नहीं समझने की बात है. यह ग़ज़ल उसी समझ को पुख़्ता कर रही है. 

बाकी बातें तो होती ही रहती हैं. 

दिल से दाद कुबूल करें. 

शुभ-शुभ

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2017 at 9:35am

आ. अनुराग जी,

आप का शुक्रिया अदा करता   हूँ कि आपने सूर्यभानु गुप्त जी से परिचय  करवाया.
उनकी ग़ज़लें पढ़ रहा हूँ और   रदीफ़ के जादू में सराबोर हो रहा हूँ ,,,
आप को धन्यवाद 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 11:49am

शुक्रिया आ. सुरेन्द्र नाथ जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 11:49am

शुक्रिया आ. रोहित जी....
मुझे शिष्य ही रहने दें... गुरूजी  होने से दूरी ही भली 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 11:47am

शुक्रिया आ. बृजेश जी 

Comment by नाथ सोनांचली on April 18, 2017 at 4:30am
आद0 निलेश'नूर'साहिब सादर अभिवादन,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 17, 2017 at 11:01pm

आह्.......दिल छू गयीं गुरूजी आपकी ये रचना सत्य प्रतीत होती हैं

कृपया ध्यान दे...

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