For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल के पाँव दाबे हैं तभी कुछ सीख पाये हैं ...तंज-ओ-मज़ाह

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२ 
.
हमारा साग बांसी है तुम्हारी भाजी ताजी है
जो इस में ऐब ढूँढेगा तो वो आतंकवादी है.
.
गजल के पाँव दाबे हैं तभी कुछ सीख पाये हैं 
इसे पाखण्ड कहना आप की जर्रानवाजी है.
.
तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया
हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है.
.
बहर पर क्यूँ कहर ढायें लिखे वो ही जो मन भाये
मगर इतना समझ लें, ये अदब से बेईमानी है.
.
शहर भर का जहर पीने के आदी हो चुके हैं हम
समझ लीजै यही हम जैसों की एरिस्टोक्रेसी है.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 919

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2017 at 8:40pm

शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी.....
ग़ज़ल   तंज़  के रूप    में है ... अधिक कुछ न देखें इसमें 
आभार 

Comment by नाथ सोनांचली on April 16, 2017 at 11:24am
आद0 भाई नीलेश जी सादर अभिवादन, बहुत मस्त गजल, वाह, वाह। मतला से ही पूरी रवानगी भरी, क्या कहना,नमन आपको। बधाई निवेदित है।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 15, 2017 at 10:54pm
गजल के पाँव दाबे हैं तभी कुछ सीख पाये हैं...मगर इतना समझ लें, ये अदब से बेईमानी है.
हमारे लिए तो सार्थक ही है..
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 14, 2017 at 4:58pm

शुक्रिया भाई... 
मज़ाक है .. सार्थकता न खोजे इस में ..
आभार 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 14, 2017 at 4:52pm
बहुत खूबसूरत सार्थक ग़ज़ल कही आदरणीय..बेहतरीन.. सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2017 at 8:12pm

शुक्रिया आ. दिनेश भाई 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2017 at 8:12pm

शुक्रिया आ. राजेश दीदी ....
मुझे लगा कि बात ग़ज़ल ही करे तो बेहतर हो 
आभार 

Comment by दिनेश कुमार on April 13, 2017 at 8:01pm
तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया
हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है....
आपका जवाब नहीं आ नीलेश सर। वाह वाह। बेहतरीन अशआर।
Comment by दिनेश कुमार on April 13, 2017 at 8:00pm
तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया
हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है....
आपका जवाब नहीं आ नीलेश सर। वाह वाह। बेहतरीन अशआर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2017 at 7:24pm

तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया
हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है.-----वाह्ह्ह्ह हाहाहा ---सही कहा 

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है कमान से अच्छे तीर निकले हैं भैया 

दिल से दाद प्रेषित है |
.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service