For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - तू वो ही है , जो सच में है तेरे अंदर ( गिरिराज भंडारी )

1222    1222    1222   

उसे कह दो जहाँ हूँ मैं वहाँ समझे

ज़मीं हूँ मैं, न मुझको आसमाँ समझे

 

हो किससे गुफ़्तगू इस दश्ते वीराँ में

कोई तो हो, जो मेरी भी ज़बाँ समझे

 

हक़ीक़त आशना है क्यूँ भला वो भी

है राहे संग उसको कहकशाँ समझे

 

छिनी रोटी तो छायी बद हवासी है

मुझे मयख़्वार क्यूँ सारा जहाँ समझे

 

मुहज़्ज़ब जो दबा लेता है नफरत, को

सही समझे अगर, आतिशफ़िशाँ समझे 

 

तू वो ही है , जो सच में है तेरे अंदर 

तू वो भी है, जो तुझको ये जहाँ समझे

 

परिन्दा एक देखो ज़िद पे बैठा है      

कफस के दायरे को आसमाँ समझे

 

हरारत धूप सी देने लगा है वो 
जिये अब तक, जिसे हम सायबाँ समझे

 

पराये भी समझने का किये दावा

मगर है सच, कि अपने भी कहाँ समझे 

 

समय का आखिरी सफ़हा ये कह देगा

वो फ़ानी था जिसे तुम जाविदाँ समझे

************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 881

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 7:55pm

aa0 anuj ---behtareen .

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2016 at 7:30pm

मुहतरम जनाब  गिरिराज  साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 23, 2016 at 7:01pm

आदरणीय गिरिराज सर, क्या खूब ग़ज़ल कही है. मैं तो मतला पढ़ते ही मुग्ध हो गया फिर आगे एक से बढ़कर एक शेर. वाह वाह वाह. इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by Samar kabeer on November 23, 2016 at 3:38pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by Sushil Sarna on November 23, 2016 at 2:42pm

परिन्दा एक देखो ज़िद पे बैठा है
कफस के दायरे को आसमाँ समझे

वाह आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब बहुत ही खूबसूरत नक्काशी की आपने अपनी ग़ज़ल में अपने भावों की। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by नाथ सोनांचली on November 23, 2016 at 2:38pm
वाह वाह वाह वाह वाह, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, बेहद उम्दा गजल, क्या कहने। हर अशआर पर मेरी वाह है। दिली मुबारकबाद कबूल फरमाएं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service