For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - ये अंदर से आयी है वो रोशनी है ( गिरिराज भंडारी )

122   122   122   122  

ये माना कि हर सम्त कुछ बेबसी है

मगर हौसलों की बची ज़िन्दगी है

 

बुझेगी नहीं चाहे आंधी भी आये  

ये अंदर से आयी है वो रोशनी है

 

लकीरें हथेली की सारी थीं झूठी

जो कहती थीं आगे खुशी ही खुशी है

 

वो भूँके या काटे, डसे आस्तीं को  

अगर आदमी था, तो वो आदमी है

 

बिना ज़हर वाले बने हैं गिज़ा सब

ये क़ीमत चुकाई यहाँ सादगी है

 

घराना उजालों का था जिनका, उनका    

सुना है अँधेरों से भी हमदमी है

 

ज़रा देखना दौर मुझ तक भी आये

मिजाज़ अपना यारो ज़रा बलगमी है

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 546

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 12, 2016 at 8:42pm
वाह बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई
Comment by Samar kabeer on November 10, 2016 at 8:38pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
आख़री शैर के ऊला मिसरे में'मुझ तक'को "हम तक"करना मुनासिब होगा क्या ?क्योंकि सानी मिसरे में 'अपना'शब्द आगया है, देखियेगा ।
Comment by Sushil Sarna on November 10, 2016 at 4:03pm

लकीरें हथेली की सारी थीं झूठी
जो कहती थीं आगे खुशी ही खुशी है

वाह गज़ब आदरणीय क्या शे'र है मजा आ गया। .... खूबसूरत अशआर और खूबसूरत अहसासों की इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2016 at 2:53pm

आदरनीय मनन भाई , उत्साह वर्धन के ल्लिये आपका हृदय से आभार ।

Comment by Manan Kumar singh on November 10, 2016 at 11:47am
आदरणीय गिरिराज भाई बधाई एक संदेशपरक गजल के लिये,'....सुना है अँधेरों से भी हमदमी है'।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
17 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service