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    बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

    1222 1222 1222 1222

            ग़ज़ल

सड़क पर बजबजाते चीखते नारों से क्या होगा

हवा में फुस्स हो जायें जो, गुब्बारों से क्या होगा ?

 

लडाई है बहुत बाकी बहुत कुछ कर गुजरना है

नही है हौसला दिल में तो नक्कारों से क्या होगा ?

 

जिन्हें हमने अता की है,  हकूमत देश की यारों

उन्ही में बदगुमानी है तो उद्गारों से क्या होगा ?

 

पड़े है एक कोने में,  जिन्हें परचम उठाना है

चलो उनको जगाओ सिर्फ धिक्कारों से क्या होगा?

 

हमें मिलकर उगानी है,  जवानों की नयी फसलें

पुराने बुझ चुके बदहाल मक्कारों से क्या होगा ?

 

करो कुछ तो गजब ऐसा कि जज्बा हो नया पैदा

थिरकते पाँव की पायल की झंकारों से क्या होगा ?

 

अगर होना है अपने आप होगा आँख का जादू

यहाँ ‘गोपाल’ केवल मन्त्र अभिचारों से क्या होगा ?

(मौलिक  व् अप्रकाशित )

 

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 16, 2016 at 6:35pm
जोश और जागरूकता का संदेश देती बेहतरीन अनुपम कृति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 15, 2016 at 10:50pm

 वाह बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण ग़ज़ल 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 15, 2016 at 8:42pm

मोहतरम जनाब गोपाल नारायण  साहिब  ,सन्देश देती अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2016 at 6:09pm
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , बहुत ही सारगर्भित ग़ज़ल , उपदेशों, बाजों, नारों से तब तक कुछ नहीं होता जब तक खुद में नियत न हो। बधाई , इस प्रस्तुति के लिए , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 5:57pm

क्या बात है !  आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गज़ल लाजवाब हुई है , दिल से बधाइयाँ आपको ।
हमें मिलकर उगानी है,  जवानों की नयी फसलें

पुराने बुझ चुके बदहाल मक्कारों से क्या होगा ?    ---- बहुत खूब !

Comment by maharshi tripathi on June 15, 2016 at 4:09pm
आ.गोपाल नारायण जी,आपकी पहली गज़ल पढ़ रहा हूँ शायद,आप काफी बेहतर लग रहे हैं,

हमें मिलकर उगानी है, जवानों कीनयी फसलें
पुराने बुझ चुके बदहाल मक्कारों से क्या होगा
!
पुराने और मक्कार लोगों को बदलना होगा,तभी नये को मौका मिलेगा और काम भी अच्छा होगा !!!!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 15, 2016 at 12:42pm

आदरणीय गोपाल सर ..फर्ज के प्रति आगाह करती , पुराणी व्यबस्थाओं के बदलने की बात करती , और बर्तमान परिदृश्य से साक्षात्कार करती इस शानदार रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Shyam Narain Verma on June 15, 2016 at 10:23am
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को आदरणीय ,  सादर

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