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कर सत्य को अंगीकार...

कर सत्य को अंगीकार  ....

आवरण से श्रृंगार किया
माया से किया प्यार
अन्तकाल संसार ने
सब कुछ लिया उतार
अद्भुत प्रकृति है जीव की
ये भटके बारम्बार
लौ लगाये न ईश से
पगला बिलखे सौ सौ बार
शीश झुकाये मन्दिर में
हो जैसे कोई मज़बूरी
अगरबत्ती भी यूँ जलाए
जैसे ईश पे करे उपकार
कपट कुण्ड में स्नान करे
और विकृत रखे विचार
कैसे मिलेगा जीव तुझे
उस पालनहार का प्यार
सत्य धर्म है,सत्य कर्म है
सत्य जीवन आधार
ईश स्वयं तुझे अपनाएंगे
कर सत्य को अंगीकार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 4:00pm

 आदरणीय  pratibha pande जी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 

Comment by pratibha pande on August 10, 2015 at 7:12pm

अगरबत्ती भी यूं जलाये जैसे ईश पर करे उपकार ,कितनी सच्ची पंक्तियाँ हैं बधाई आपको

Comment by Sushil Sarna on August 9, 2015 at 9:13pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 9, 2015 at 1:17pm

आदरणीय सुशील भाई , बहुत सार्थक सन्देश देती पंक्तिया कही हैं , रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Sushil Sarna on August 7, 2015 at 11:49am

आदरणीय  Dr. Vijai Shankerजी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 6, 2015 at 10:00pm
ईश स्वयं तुझे अपनाएंगे
कर सत्य को अंगीकार
बहुत सुन्दर विचार , आदरणीय सुशील सरना जी। बधाई , इस प्रस्तुति पर , सादर
Comment by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 7:42pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपकी सराहना का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 4:23pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

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