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ग़ज़ल-नूर ज़ुल्फों को जंजीर लिखेगा,

22/22/22/22 (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)
ज़ुल्फों को जंजीर लिखेगा, 
तो कैसे तकदीर लिखेगा.
.

जंग पे जाता हुआ सिपाही,
हुस्न नहीं शमशीर लिखेगा.
.

राज सभा में मर्द थे कितने,  
पांचाली का चीर लिखेगा. 
.

ईमां आज बिका है उसका,
अब वो छाछ को खीर लिखेगा.
.

कोई राँझा अपनें खूँ से, 
जब भी लिखेगा, हीर लिखेगा.

.

शेर कहे हैं जिसने कुल दो,
वो भी खुद को मीर लिखेगा.
.

नहीं जलेगा वो ख़त तुझसे, 
जो आँखों का नीर लिखेगा. 
.

‘नूर’ की बातें नूर ही समझे,
कब्र को भी जागीर लिखेगा.  
.
नूर 
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 944

Comment

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Comment by मनोज अहसास on May 1, 2015 at 4:37pm
सादर धन्यवाद् सर बड़ी कृपा की आपने

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 1, 2015 at 3:34pm
आदरणीय नीलेश जी बेमिसाल ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2015 at 3:33pm

आ. मनोज कुमार अहसास जी ..इस २२२ मात्रा वाली बहर में २२२ को कहीं भी ११२२, १२१२, २२११, २१२१ आदि लेने की छूट है ..उसी सन्दर्भ में in कॉम्बिनेशन्स का ज़िक्र किया है 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2015 at 3:17pm

आप सब की मुहब्बतों का शुक्रिया. कल सप्ताहांत के चलते बहुत व्यस्त रहा इसलिए उपस्थित न हो सका. क्षमा प्रार्थी हूँ ..
आप सबने ग़ज़ल को समय दिया और सराहना की इससे अभिभूत हूँ 
दिल से शुक्रिया 
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 9:59am

क्या बात है , पूरी गज़ल बे मिसाल लगी , हर शे र के लिये दाद हाज़िर है  स्वीकार करें ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 1:33am
राज सभा में मर्द थे कितने,
पांचाली का चीर लिखेगा.
.ईमां आज बिका है उसका,
अब वो छाछ को खीर लिखेगा.
वाह ! बहुत खूब लिखा है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीलेश नूर जी , सादर।
.
Comment by वीनस केसरी on May 1, 2015 at 12:28am

राज सभा में मर्द थे कितने,  
पांचाली का चीर लिखेगा. 
.

कोई राँझा अपनें खूँ से, 
जब भी लिखेगा, हीर लिखेगा.

.

नूर’ की बातें नूर ही समझे,
कब्र को भी जागीर लिखेगा. 

वाह नूर साहब क्या कहने ..अच्छे अशआर निकाले ..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 30, 2015 at 10:33pm

नहीं जलेगा वो ख़त तुझसे, 
जो आँखों का नीर लिखेगा. ,,,क्या बात है 

जंग पे जाता हुआ सिपाही,
हुस्न नहीं शमशीर लिखेगा.,,,,,क्या जज्वा है 

ज़ुल्फों को जंजीर लिखेगा, 
तो कैसे तकदीर लिखेगा..बिलकुल सही 

वाह ...मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 30, 2015 at 1:02pm

आ० नूर भाई

गजल बहुत भाई

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 30, 2015 at 3:29am

वाह वाह आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी उम्दा ग़ज़ल के लिये बधाई ...सादर 

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