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ग़ज़ल -नूर -मुश्किल सवाल ज़ीस्त के आसान हो गए

22 12 12 11 22 12 12
मुश्किल सवाल ज़ीस्त के आसान हो गए,
ता-हश्र हम जो कब्र के मेहमान हो गए.
.

जब से कमाई बंद हुई सब बदल गया
अपनों पे बोझ हो गए सामान हो गए.
.
मेरे ये हर्फ़ बन न सके गीत और ग़ज़ल
उनके तो वेद हो गए कुर’आन हो गए.
.
उसने बना के भेजा हमें आदमी प् हम 
हिन्दू इसाई और मुसलमान हो गए.
.  
जब हश्र पर दिखाया गया आईना हमें  
ख़ुद के चलन पे ख़ुद ही पशेमान हो गए.
.
कुछ लोग इस जहान में इंसान भी नहीं, 
कुछ लोग ऐसे देखे जो भगवान हो गए.
.
ऐसा नहीं की आपने इस दिल को छू लिया  
मासूमियत पे आपकी कुर्बान हो गए. 
.
जब से बदल लिया है हवाओं ने अपना रुख
वाक़िफ थे लोग जितने भी अन्जान हो गए.  
.
मिसरे कहे थे चंद यूँ ही खेल खेल में
शायर के बाद उसकी वो पहचान हो गए.
.
बरसों ख़फ़ा रहे वो कभी बात तक न की
फिर एक दिन वो हम पे मेहरबान हो गए. 
.
वो रह न पाए साथ मगर धडकनों में हैं
मेरी हर एक नज़्म का उन्वान हो गए.
.
जब से हुआ है ‘नूर’ निगहबाँ चिराग़ का 
जितने भी थे रक़ीब वो तूफ़ान हो गए.
.
नूर 
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 895

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2015 at 1:58pm

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2015 at 1:58pm

शुक्रिया आ. विजय शंक जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2015 at 1:57pm

शुक्रिया आ. समर कबीर साहब.
अमूमन हर शायर दाद पाने का ख्वाहिशमंद होता है लेकिन अगर दाद के साथ लाखों का मशविरा भी मिल जाए तो क्या कहने. आपके कहे अनुसार मूल प्रति में बदलाव कर लिया है.
सादर   
 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 31, 2015 at 12:31pm

आ० नीलेश जी

बड़ेबड़े विद्वान आपनी बात कह गए . मैं  क्या कहूं. एक्से एक बाहुस्न  शेर. शानदार मक्ता .

-मेरे ये हर्फ़ बन न सके गीत और ग़ज़ल
उनके तो वेद हो गए कुर’आन हो गए

जब हश्र पर दिखाया गया आईना हमें  
ख़ुद के चलन पे ख़ुद ही पशेमान हो गए.

कुछ लोग इस जहान में इंसान भी नहीं, 
कुछ लोग ऐसे देखे जो भगवान हो गए
----वगरह वगैरह .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 31, 2015 at 9:11am

निलेश भैया आपकी ग़ज़लें सटीक हुआ करती हैं चाहे भाव पक्ष कहिये या शिल्प किस शे'र को कोट करूँ सभी लाजवाब है हर शे'र के लिये दाद हाज़िर है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 31, 2015 at 6:30am

आ0 भाई नीलेश जी इस सुंदर ग़ज़लक़े लिए हार्दिक बधाई .

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 31, 2015 at 4:11am
कुछ लोग इस जहान में इंसान भी नहीं,
कुछ लोग ऐसे देखे जो भगवान हो गए.
वाह क्या बात है, आदरणीय नीलेश नूर जी बहुत खूब , पूरी ग़ज़ल बहुत उम्दा है , बहुत बहुत बधाई, सादर ,
Comment by Samar kabeer on March 30, 2015 at 10:57pm
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,ग़ज़ल का हक़ अदा कर दिया आपने,वाह वाह वाह,शैर दर शैर दाद क़ुबूल फ़रमाऐं,इस ग़ज़ल में जितने भी शैर हैं सब एक से बढ़ कर एक हैं,मुझे आज रात की ग़िजा मिल गई,आपका ये शैर सुनकर:-
" जब से कमाई बंद हुई सब बदल गया
अपनों पे बोझ हो गए सामान हो गए"

सानी मिसरा अगर इस तरह हो जाए तो शैर का हुस्न दो बाला हो जाएगा:-
"अपनो पे बोझ बन गए सामान हो गए",एक ही शब्द "हो गए" दो बार ठीक नहीं लग रहा,यह तनक़ीद नहीं एक दोस्ताना मशवरा है,अगर आप क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 30, 2015 at 9:38pm

शुक्रिया आ. दिनेश भाई जी ..

Comment by दिनेश कुमार on March 30, 2015 at 9:22pm
वाह वाह वाह आ. निलेश भाई, कमाल की ग़ज़ल हुई है। मैं मिथिलेश भाई की टिप्पणी से अक्षरशः सहमत हूँ। इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए मेरी तरफ से भी ढेरों दाद व मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए भाई।

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