For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“अरे!! भाई.. दोनों में से एक बैल तो अभी दांत वाला है, ठीक से कीमत बता. फिर बिना दांत वाला वैसे ही लेजा, उसका क्या करूँगा मैं..? आखिर खली-भूसा भी महंगा पड़ता है..”

“पटेल भैया .. दांत वाले की ही कीमत है, बुढ्ढे बैल को मुझ से भी कौन खरीदेगा..? यहीं खूंटे भी ही मरने दो..”

नजदीक ही पटेल भैया के बीमार पिता, चारपाई पर पड़े सारी बातें सुन रहे थे...

 

  जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 823

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2015 at 1:57pm

जीतू भाई

बहुत बढ़िया . बूढ़े का मतलब बेकार का बोझ .  बहुत शिक्षाप्रद .  सादर.

Comment by Shyam Narain Verma on March 23, 2015 at 1:06pm
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 23, 2015 at 10:27am

उम्दा लघुकथा! इतने कम शब्दों में कथा अपने भाव को पूर्णतया रखने में सफल हुयी!बहुत बहुत बधाई!आदरणीय जितेन्द्र सर!!

 कथा में एक संशय मुझे है!कहने में संकोच होता है कि मुझे मीन-मेख निकलने वाला ही न समझ लिया जाये!पर मेरा भाव कभी किसी की रचना चूक ढूढने का कभी नही रह्ता! जो स्वाभाविक प्रश्न मन में उठता है वह कह देता हूँ,इसे किसी ओर रूप में न देखा जाये तो स्वस्थ्चर्चा हो और ज्ञानार्जन हो मेरा भी और सभी का!

आपकी कथा बैल के दांत के माध्यम से अपना सन्देश को रखती है! जहा पर बैल के मुख में दन्त न होने से उसे बूढ़ा बताया जा रहा है!बैल के दन्त के हिसाब से उसकी क़ीमत आंकी जाती है बिल्कुल सही है,पर यह कीमत उसकी शैशव से प्रौढ़ होने के प्रमाण के रूप में लेकर की जाती है,जैसे २-४ दन्त के हिसाब से उसकी उम्र शैशव की,6 से प्रौढ़,8 से उमदराज प्रौढ़ के हिसाब से क़ीमत तय होती है ! किन्तु बैल के दांत न होने की बात से उसका वृद्ध होना आप नही दर्शा सकते,अलबत्ते उसकी शिशुवस्था को भले दर्शा सकते है!!

बैल के वृद्धावस्था दांत न होना सही प्रतीक नही है! और लघुकथा इसी प्रतीक पे आधारित है, तो प्रतीक का सही-सत्य होना नितांत आवश्यक है! सादर!

Comment by Pawan Kumar on March 23, 2015 at 9:59am

आ0 जितेन्द्र भईया, सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी लघुकथा
प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई!सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 9:23am
वृद्ध एवं बीमार पिताजी सब सुन रहे थे , एक कथा चित्र है , एक आघात है , आहत कई लोग हुए।
प्रिय जीतेन्द्र जी , कथाकार को बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 8:48am

आदरणीय  जितेन्द्र पस्टारिया  जी बहुत ही प्रभावकारी लघुकथा हुई है 

नजदीक ही पटेल भैया के बीमार पिता, चारपाई पर पड़े सारी बातें सुन रहे थे... ये वाक्य अपना पूरा प्रभाव छोड़ता है और पाठक को बिजली का वहीँ झटका लगता है जो लघुकथा से अपेक्षित होता है 

इस सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई निवेदित है 

Comment by विनय कुमार on March 23, 2015 at 12:01am

बहुत मार्मिक और सटीक लघुकथा , बधाई आपको..

Comment by Hari Prakash Dubey on March 22, 2015 at 11:55pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया साहब , बूढ़े बैल  और बूढ़े इंसान की क़द्र कहाँ रह जाती है आज के इस समय में, शानदार रचना ,सन्देश स्पष्ट है , हार्दिक बधाई ! सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service