For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - ये बम क्या करें..... (मिथिलेश वामनकर)

212 - 212 - 212 - 212

 

जिंदगी में नहीं कोई गम क्या करें

दिख रही बस खुशी मुहतरम क्या करें

 

टूटकर इश्क भी हमसे कब हो सका 

काम थे और दुनिया में हम क्या करें

 

आप ही गेसुओं की तरफ देखिए 

जो हमें दिख रही आँख नम क्या करें

 

ये शज़र, ये नदी, वादियाँ भी सरल

आदमी को मिले पेचो-ख़म क्या करें

 

मजहबों ने सिखाया सुकूं चैन गर

आपकी जेब में फिर ये बम क्या करें

 

तिश्नगी आब की, ख़्वाहिशें ख्वाब की

मर रहीं हसरतें दम-ब-दम क्या करें

 

एक अरसा हुआ है खुदी से मिले

आशना लग रहे खुद से कम क्या करें

 

दो खिलौने बनाए है जर्रे से फिर,

हो गया आदमी खुशफहम क्या करें

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------

 

बह्र-ए-मुत्दारिक मुसम्मन सालिम

अर्कान – फाइलुन /फाइलुन /फाइलुन / फाइलुन

वज़्न –   212/  212/  212/  212

Views: 790

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 10, 2015 at 9:39pm
आदरणीय खुर्शीद सर, आपकी इस्लाह पाकर धन्य हुआ। बहुत समय से इंतज़ार था आपकी इस्लाह का।
आपके मार्गदर्शन अनुसार-
आप ही देखियें गेसुओं की तरफ
जो हमें दिख रही आँख नम क्या करें

मज़हबों ने सिखाया है चैनो-सुकूं

ग़ज़ल की सराहना और स्नेह के लिए हार्दिक आभार।
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति ने ही मान बढ़ा दिया। बहुत बहुत आभार।
Comment by khursheed khairadi on March 10, 2015 at 9:13pm

आदरणीय मिथिलेश जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |शेर दर  शेर दाद कबूल फरमावें |

आप ही गेसुओं की तरफ देखियें

जो हमें दिख रही आँख नम क्या करें........यहाँ देखियें '  करें'  रदीफ़ के साथ स्वर-साम्य क दोष देता प्रतीत हो रहा है |

मजहबों ने सिखाया है चैनो-अमन......या तो २१२१ या २२२१  में होकर बह्र से बाहर  जा रहा है |

इन अशआर पर विशेष दाद कबूल फरमावें |

तिश्नगी आब की, ख़्वाहिशें ख्वाब की

मर गई हसरतें दम-ब-दम क्या करें

 

एक अरसा हुआ है खुदी से मिले

आशना लग रहे खुद से कम क्या करें

आदरणीय इस मंच पर एक दूसरे को निखारना हमारे मरासिम कमज़ोर न करें ,इसी आशा के साथ .....सादर अभिनंदन |

Comment by Shyam Mathpal on March 10, 2015 at 7:55pm

Aadarniya Vamankar Ji,

Dilo dimag par asar karti aapki gazal . Woh..... Dheron badhai.

मजहबों ने सिखाया है चैनो-अमन

आपकी जेब में फिर ये बम क्या करें

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 7:43pm

मजहबों ने सिखाया है चैनो-अमन

आपकी जेब में फिर ये बम क्या करें....लाजवाब , इस सुन्दर गज़ल के लियेआपको बहुत बहुत बधाई

Comment by maharshi tripathi on March 10, 2015 at 7:02pm

इस सुन्दर गजल पर आपको बधाई आ.मिथिलेश जी |

Comment by Hari Prakash Dubey on March 10, 2015 at 6:57pm

आदरणीय मिथिलेश भाई बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है ,

ये शज़र, ये नदी, वादियाँ भी सरल

आदमी को मिले पेचो-ख़म क्या करें..बहुत सुन्दर 

मजहबों ने सिखाया है चैनो-अमन

आपकी जेब में फिर ये बम क्या करें....लाजवाब , बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर रचना पर ! सादर

Comment by विनय कुमार on March 10, 2015 at 6:29pm

// मजहबों ने सिखाया है चैनो-अमन
आपकी जेब में फिर ये बम क्या करें // बहुत बेहतरीन , बहुत बहुत बधाई..

Comment by Shyam Narain Verma on March 10, 2015 at 3:30pm
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । 
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 10, 2015 at 12:14pm
टूटकर इश्क भी हमसे कब हो सका
काम थे और दुनिया में हम क्या करें ।।
बहुत खूब ,सुन्दर, बधाई , प्रिय मिथिलेश जी , सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 10, 2015 at 12:04pm

आ० मिथिलेश जी

गुलाब की  किस पंखुडी  से कहू कि तू  सबसे  कोमल है  i वल्लाह क्या बात है  i सादर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
5 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
6 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२ग़मज़दा आँखों का पानीबोलता है बे-ज़बानीमार ही डालेगी हमकोआज उनकी सरगिरानीआपकी हर बात…See More
Apr 10

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service