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रक्षाबंधन (लघुकथा)

“छोटी आज सुबह से ही सज धज कर बैठी थी, उसने बहुत ही सुन्दर राखी खरीद कर पहले ही रख ली थी, थाली में रोली, चावल, दीया- बाती और मिठाई सजा कर बैठी थी, आज कई दिनों बाद उसका राजा भईया आ रहा था, आज ‘रक्षाबंधन’ जो था !”

“तभी उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी ,एक एस.ऍम.एस था.. “हे छोटी ,हैप्पी रक्षाबंधन टू यू”, सॉरी आज नहीं आ पाऊंगा तुम्हारी भाभी को लेकर ससुराल आ गया हूँ , मॉम, डैड को हेलो कहना , लव यू बाय !”

“छोटी ने लैपटॉप उठाया ,एक अटैचमेंट बनाया ,मेल किया , भाई को एस.ऍम.एस किया “भईया, राखी मेल में भेज दी है ,प्रिंटआउट निकाल कर बाँध लेना , लव यू टू !”

“ इधर मिठाई मैं न जाने कहाँ से चीटियाँ आ गयीं थी !”

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”       

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Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 4, 2015 at 5:43pm

Aadharniya Hari Parkash Dubeyji sundar rachna.....Varmaan samay ka rishato par padtaa prabhaav bakhoovbi dikhaaya aapne.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 4, 2015 at 4:49pm

“ इधर मिठाई मैं न जाने कहाँ से चीटियाँ आ गयीं थी !”  बहुत खूब आदरणीय हरिप्रकाश जी. बधाई

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 3:14pm

आदरणीय हरि प्रकश भाई , सही किया बहना ने , एक अच्छी लघुकथा के लिये बधाइयाँ ।

Comment by savitamishra on February 4, 2015 at 12:25pm

“ इधर मिठाई मैं न जाने कहाँ से चीटियाँ आ गयीं थी !”..वाह ...ऐसे ही चीटी पड़ती जा रही है हर मीठे रिश्ते पर

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 4, 2015 at 11:24am
आज के हालत पर व्यंग करती है यह लघु - कथा , बधाई आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, सादर।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2015 at 11:04am

//प्रिंटआउट निकाल कर बाँध लेना//

इस पक्ति की कोई जरुरत नहीं है. 

//“ इधर मिठाई मैं न जाने कहाँ से चीटियाँ आ गयीं थी !”//

इस पंच पर मन मुग्ध है, अच्छी लघुकथा बहुत बहुत बधाई. 

Comment by विनय कुमार on February 4, 2015 at 10:36am

आखिरी पंक्तियाँ बहुत कुछ कह गयीं आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी | बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिए..

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