For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

युग्मों का गुलदस्ता …

युग्मों का गुलदस्ता …


एक  पाँव  पे  छाँव  है  तो  एक  पाँव  पे   धूप
वर्तमान  में  बदल  गया  है  हर रिश्ते का रूप


अब  मानव  के  रक्त  का  लाल  नहीं   है   रंग
मौत  को  सांसें  मिल  गयी  जीवन हारा  जंग


निश्छल प्रेम अभिव्यक्ति के बिखर गए हैं पुष्प
अब  गुलों  के  गुलशन  से  मौसम  भी  हैं रुष्ट


तिमिर  संग  प्रकाश  का  अब  हो गया  है मेल
शाश्वत  प्रेम अब बन गया है शह मात का खेल


नयन  तटों  पर  अश्रु  संग  काजल  करे पुकार
पिया  मिलन  को  धधक  रहे  अधरों पे  अंगार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 672

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2015 at 1:01pm

आदरणीय    gumnaam pithoragarhi   जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2015 at 1:01pm

आदरणीय   Dr Ashutosh Mishra  जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2015 at 1:00pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव   जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। सर मैंने ये युग्म दोहे की विधा में नहीं लिखे अन्यथा मैं इसे युग्म न कहकर दोहे ही कहता।  ये स्वतंत्र विचारों के  स्वतंत्र युग्म हैं बस विचार आते गए और लिखता गया। दोहे लिखता तो उसकी नयमावली की परिधि में ही लिखता।  आपके विचारों का हार्दिक आभार सर जी।  

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2015 at 12:56pm

आदरणीय   Shyam Narain Verma   जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by ajay sharma on January 9, 2015 at 10:42pm

तम के   संग  प्रकाश  का   अभी हुआ  है मेल 
प्रेम शाश्वत  बन गया   शह-ओ- मात का खेल............"shah-au-maat"  ke esthan par 

prem shashvat ban gaya , har jeet ka khel.............zyada better lagta hai ...geyta bhi aa jayegi ...........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 9, 2015 at 9:36pm

आदरणीय सरना जी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 9, 2015 at 6:38pm

वाह बहुत सुन्दर, प्रस्तुति के लिए बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 9, 2015 at 4:58pm

आदरणीय सरना जी ..सुंदर भावों को समाहित किये इन समस्त दोहों के लिए तहे दिल बधाई .सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 3:59pm

 आ  0 सरना जी

अच्छे भावों से भरी इस दोहावली में शिल्पगत कुछ सुधार अपेक्षित है -

एक  पाँव  पे  छाँव  है       एक  पाँव  पे   धूप 
बदल  गया  है आजकल    हर रिश्ते का रूप   


अब  मानव  के  रक्त  का  लाल  नहीं   है   रंग
सांस मौत  को  मिल  गयी     जीवन हारा  जंग


निश्छल हर  अभिव्यक्ति से    जग होता है तुष्ट  
अब गुलशन से गुलो से       मौसम  भी  हैं रुष्ट


तम के   संग  प्रकाश  का   अभी हुआ  है मेल 
प्रेम शाश्वत  बन गया   शह-ओ- मात का खेल


नयनन  तट  पर  अश्रु  संग  काजल  करे पुकार
पिया  मिलन  को  धधकते   अधरों पर  अंगार

Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2015 at 1:19pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service