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२१२२/ २१२२/२१२२/२१२ 
.
जाने कितने ग़म उठाता हूँ ख़ुशी के नाम पर,
ज़हर मै पीता रहा हूँ तिश्नगी के नाम पर.
.

ऐ सिकंदर!! जंग तूने जो लड़ी, कुछ भी नहीं,
जंग तो मै लड़ रहा हूँ ज़िन्दगी के नाम पर.
.

अधखिली कलियों की बू ख़ुद लूटता है बागबाँ,
शर्म सी आने लगी है आदमी के नाम पर.
.

शुक्रिया उस शख्स का जिसने बना डाली शराब,
दिल की बाते लब से निकली बेख़ुदी के नाम पर.
.

आँखे अपनी भेज कर कुछ बादलो की शक्ल में,
इक समंदर रो पड़ा सूखी नदी के नाम पर.
.

ज़ह्नो दिल पर चढ़ रहा है इक कसैला ज़ायका,
गो निंबोली चख रहे हों दोस्ती के नाम पर. 
.
निलेश "नूर"

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 761

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 7, 2014 at 4:48pm

लाजवााब गजल हार्दिक बधाइ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 7, 2014 at 3:37pm

शुक्रिया इस मंच का जिसने मिलाया ’नूर’ से 

जल-तरंगें सुन रहा हूँ.. शायरी के नाम पर !!

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 7, 2014 at 1:37pm

" ऐ सिकंदर!! जंग तूने जो लड़ी, कुछ भी नहीं,
जंग तो मै लड़ रहा हूँ ज़िन्दगी के नाम पर "
यूँ तो सभी शेर बहुत अच्छे हैं , पर इसकी बात कुछ अलग हैं।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीलेश जी,

Comment by ram shiromani pathak on September 7, 2014 at 12:52pm
.
शुक्रिया उस शख्स का जिसने बना डाली शराब,
दिल की बाते लब से निकली बेख़ुदी के नाम पर.
.
आँखे अपनी भेज कर कुछ बादलो की शक्ल में,
इक समंदर रो पड़ा सूखी नदी के नाम पर.।।।।।
वाह वाह आदरणीय निलेश जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हार्दिक बधाई आपको।।।।। सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 7, 2014 at 12:51pm
नीलेश जी
हमेशा से कायल रहा हूँ i क्या तारीफ करूं i शब्द बौने पड जाते है i वाह वाह और वाह ----
ऐ सिकंदर!! जंग तूने जो लड़ी, कुछ भी नहीं,
जंग तो मै लड़ रहा हूँ ज़िन्दगी के नाम पर.
.
अधखिली कलियों की बू ख़ुद लूटता है बागबाँ,
शर्म सी आने लगी है आदमी के नाम पर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 7, 2014 at 9:42am

वाह वाह वाह हर शेर के लिये वाह है आदरणीय निलेश भैया लाजवाब तारीफ के लिये अल्फ़ाज़ नहीं मिल रहे हैं बहुत बहुत मुबारकबाद इस रचना के लिये

Comment by vandana on September 7, 2014 at 7:31am

आँखे अपनी भेज कर कुछ बादलो की शक्ल में, 
इक समंदर रो पड़ा सूखी नदी के नाम पर.

वाह बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय 

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