For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिन्दी भाषा पखवारे पर (नवगीत) // --सौरभ

अस्मिता इस देश की हिन्दी हुई
किन्तु कैसे हो सकी
यह जान लो !!
कब कहाँ किसने कहा सम्मान में..
प्रेरणा लो,
उक्तियों की तान लो !

कंठ सक्षम था
सदा व्यवहार में
स्वर कभी गूँगा नहीं था..
भान था.
इच्छितों की चाह में
संदर्भ थे
दर्द में
पारस्परिक सम्मान था

भाव कैसे रूढ़ियों में बोलता ?
शक्त-संवेदन मुखर था,
मान लो !

शब्द गढ़ती
भावनाएँ उग सकीं  
अंकुरण को
भूमि का विश्वास था
फिर, सभी की चाहना
मानक बनी
इंगितों को
जी रहा इतिहास था

ऐतिहासिक मांग थी,
संयोग था..
’भारती’ के भाव का भी
ज्ञान लो !!

साथ संस्कृत-फारसी-अरबी लिये
लोक-भाषा
शब्द व्यापक ले कढ़ी  
था चकित करता हुआ
वह दौर भी
एक भाषा
लोक-जिह्वा पर चढ़ी

हो गया व्यवहार
सीमाहीन जब  
जन्म हिन्दी का हुआ था,
मान लो

देश था परतंत्र,
चुप था बोल से
नागरिक-अधिकार हित
ज्वाला जली
मूकजन हिन्दी लिये जिह्वाग्र पर
’मातरम वन्दे’ कहें,
आँधी चली !

देश को तब जोड़ती हिन्दी रही
ले सको
उस ओज का
अम्लान लो !
************************
--सौरभ
************************
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1166

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 3, 2014 at 8:16pm

आदरणीय सौरभ भाईजी,

इस नवगीत पर मेरी टिप्पणी लम्बी होती गई 5 ,10, 20 ,30 पंक्तियाँ और उससे भी ज़्यादा। अंत में मुझे लगा कि हिंदी पखवाड़े पर क्यों न इसे एक लेख का रूप दिया जाय । धन्यवाद भाईजी यह नवगीत मेरे लिए प्रेरणादायी है। कुछ देर पहले ही लेख पोस्ट किया था अभी-अभी पता लगा कि मौलिक अप्रकाशित शब्द लिखना भूल गया हूँ अतः पुनः  पोस्ट कर रहा हूँ। 

इस नवगीत पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें, अच्छी जानकारियाँ मिली।

Comment by mrs manjari pandey on September 3, 2014 at 6:44am

आदरणीय सौरभ जी सुन्दर सारगर्भित कथ्य। ये सच है कि अस्मिता को बचाये रखना कितना कठिन हो गया है दूसरे देश जो हमारे यहाँ पैसा निवेश कर रहे हैं उनका मान तो रखना ही होगा। यही कारण है कि पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बन गयी हैं विदेशी भाषाएँ। ऐसे में हिंदी और हिन्दीप्रेमियों को भी जतन करना हो रहा है .बहुत बहुत साधुवाद आपको इस रचना के लिए. प्रणाम।

Comment by Shyam Narain Verma on September 2, 2014 at 11:15am
" अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................. "
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 2, 2014 at 10:47am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,
आपकी वेदना पढ़ी , आप जागरूक हैं , बहुत अच्छा लगा . आपने कहीं यह महसूस किया कि भारतीय संस्कृति अपमानित है. दुखद है . पर इसका कारण कौन है ? निसंदेह इसके कारण बाह्य नहीं हैं , हो भी नहीं सकते , इसके कारण सब आंतरिक हैं . बहुत गंभीरता से देखना होगा कि हम स्वयं अपनी संस्कृति का कितना मान करते हैं , कितना अपनी संस्कृति को जानते हैं , कितना अपनी संस्कृति को प्रसारित करते हैं। हम स्वयं कितने अपनी संस्कृति के प्रति कितने स्थिर और एकाग्र चित्त हैं , नई पीढ़ी तो बिलकुल ढुलमुल है , जो सामने आ रहा है , जो मिल रहा है , जो परोसा जा रहा है , अपना रही है । जागरूक हम नहीं हैं, अपनी संस्कृति के प्रति एक भ्रम में हम हैं और दोष हम दूसरे को दें तो कुछ भी नहीं होगा . कोई किसी की संस्कृति को प्रभावित नहीं करता है , लोग स्वयं आसान, अनुकूल, सरल , आकर्षक जीवन शैली की ओर आकर्षित होते हैं , संस्कृति में जड़ता छोड़ लचीलापन लाना पड़ता है, समय और विकास के साथ चलना पड़ता है , विज्ञान को जीवन का निश्चित और ठोस अंग बनाना पड़ता है .
सब छोड़िये सबसे पहले कार्य शैली को लीजिये , हम किस कार्य शैली को ले कर चल रहें हैं , हम अपने कार्य के प्रति कितने समर्पित हैं ? और यदि नहीं हैं तो किसके प्रति समर्पित हैं और क्यों , क्या वह समर्पण हमारी संस्कृति की सीख या देन है ? हम जो भी खोते हैं वह एक रिक्तता उत्पन्न करता है और वह रिक्तता उस चीज से भरने लगती है जो आसानी से सुलभ होता है .
सादर .
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 2, 2014 at 9:44am

आदरणीय सौरभ सर ..आपने अपनी इन चंद पंक्तियों के माध्यम से हिन्दी के उद्भव से वर्तमान परिदृश्य तक हिंदी की स्थिति , हिंदी के प्रति हमारे दायित्वों की इशारा किया है वो काबिले तारीफ़ है ..अभी आपकी इस रचना से पहले विजय सर की छानिकाए पडीं ..जिसमे समसयाओ के हल ढूँढने की तरफ इशारा था सिर्फ लिखने से समस्याओं के निदान की बात नहीं थी ..आपकी रचना पढ़कर लगा आप अपनी रचना के माध्यम से हिंदी के प्रति जिस स्नहे को व्यक्त कर रहे हैं उससे ज्यादा आपन इस मंच के माध्यम से हिंदी के उन्नयन में सतत प्रयत्नशील हैं ..आज आप जैसे बिद्वानो की बजह से यह मंच लाखों लाखो पाठकों को हिंदी की तरफ आकर्षित कर रहे हाँ ..पुरानी बिधाएं जो लुप्त प्राय हो चुकी थी उनको फिर से जीवित कर रहा है यह मंच ..मंच से जुड़े कार्यकारिणी के बिद्वत जन ..कर्म में लिप्त होकर कर्म का संदेश देने के आपके इस प्रयास का दिल की अनंत गहरायिओं से वंदन करता हूँ   सादर प्रणाम के साथ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2014 at 6:58am

आदरणीय सौरभ भाई ,आपकी इस रचना ने हिन्दी प्रेमियों को बहुत बड़ा  मैदान दिया विचार रखने के लिए , आपकी रचना सैकड़ों वर्षों के इतिहास से लेकर वर्तमान तक की बात कह रही है , सभी प्रबुद्ध पाठक के विचार पढ़ा ज्ञान अर्जन भी हुआ और हिन्दी के प्रति सभी के मन का प्रेम और प्रसार प्रचार की चिंता भी नज़र आयी |

मेरा मानना है जिस प्रकार हम सांस के लेने के लिए अलग से कोई प्रयास नहीं करते , वो बस स्वाभाविक रूप से चलते रहती है , और चूंकि साँस लेने की प्रक्रिया स्वाभाविक होती है हम सांस लेते हुए अन्य सभी काम भी कर लेते हैं , किसी भी काम को करने के लिए हमें सांस     लेना  छोड़ना नहीं पड़ता | बस वैसे ही हम हिन्दी अपना लें , किसी भी अन्य भाषा को कम करने की , छोड़ने की ज़रूरत नहीं है , हमारी साँसे हिन्दी हों बस |

मुझे भय और चिढ अंग्रेजियत से है , अंगरेजी भाषा से नहीं | और मुझे दुःख है कि आज अंग्रेजियत  उच्च और मध्य उच्च वर्गीय परिवार में हावी है , ये उनकी संस्कृति का हिस्सा होते जारहे हैं | भारतीय संकृति अपमानित है | बचना और बचाना है हमें उस छै महीने के बच्चे को जिससे उसके माता पिता अंगरेजी में बात करते हैं, जो अभी किसी भाषा का ज्ञान भी नहीं रखता , उसे उसकी सांस में अंग्रेजियत पिलाई जारही है | यही हमारी भारतीयता और हमारी भाषा के पतन का कारण न बन जाएँ |

अंत में आपके इस नव गीत को और नीचे की टिपण्णी में कही आपकी इस बात को समर्थन और नमन --

हम हिन्दी भाषी हिन्दी को जिस दिन मात्र भाषा मानना बन्द कर, इसे अपनी अस्मिता का प्रश्न बना देंगे, उसी दिन यह भाषा अपने नये रंग में आजायेगी. परन्तु, उसके पहले हम हिन्दीभाषियों को अपने वैचारिक दोगलेपन से बाहर आना होगा. अंग्रेज़ी जानना एक बात है और अंग्रेज़ी के प्रयोग को अपनी शान समझना या सामाजिक रूप से अपने को उच्च होने का पर्याय मानना निहायत दूसरी बात ही नहीं, घटिया बात है. .

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 2, 2014 at 1:24am
आदरणीय डॉo गोपाल कृष्ण भट्ट जी ,
आदरणीय सौरभ पांडे जी
प्रथम तो आदरणीय डॉo भट्ट , विचारों की भिन्नता नये विचारों को हम तक लाती है , इसलिए आपके विचारों का पूर्णतया स्वागत है.
मेरा निवेदन यह है कि भाषाओं का विकास एवं संवर्धन केवल और केवल उसके प्रयोग करने वालों के द्वारा ही होता है , किसी भी इतर प्रभाव से नहीं , क्योकि यह वाणी , बोली और जुबान का मामला है . लोगो में भाषा का प्रयोग , महत्त्व बढाइये , ऐसा साहित्य लिखिए कि आपकी भाषा को लोग सिर्फ आपकी रचनाओं के लिए पढ़ें और खुशी खुशी पढ़ें. जिस भाषा के बोलने वालों की संख्या बढ़ेगी , कोई भी सरकार उसका प्रयोग खुद करेगी और रोक तो नहीं पाएगी . यह मत भूलिए कि हिंदी के जिस स्वरूप का हम प्रयोग कर रहें हैं उसको तथा देवनागरी लिपि को यह सवरूप तेरहवीं शताब्दी में ही मिला और उसका विकास तब से ही हुआ जब हिंदी भाषा -भाषी क्षेत्र में विदेशी हुकूमतों का शासन पनप रहा था .
आज बहुत से लोगों के विदेशों से लम्बे एवं सतत सम्बन्ध बन रहें हैं. लोग विश्व - जीवन पद्दति में जा रहें हैं , ऐसे में अंग्रेजी का महत्त्व को अस्वीकार करने से कुछ हासिल नहीं होगा. आगे बढ़ने का एक ही मतलब होता है आगे बढ़ना , दूसरा खुछ नहीं , किसी एक को पीछे करके आगे बढ़ना आगे बढ़ना होता ही नहीं, वो तो एक भ्रम होता है .
हिंदी में लेखन को बढ़ावा दीजिये, भाषा को सरल, सुगम बनाइये , उसे अधिक से अधिक लोक प्रिय बनाइये , लोगों में यह विशवास बैठाइए कि हिंदी सीखना बहुत ही सरल है , कठिन तो बिलकुल भी नहीं . सरल हिंदी के प्रयोग की बात करिये। दीर्घ कालिक दृष्टि एवं विचार रखिये। प्रचार -प्रसार बिना घोषणा के करिये, सफलता मिलेगी। .
सादर शुभकामनाएं .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2014 at 12:57am

आदरणीय भाई जवाहरलालजी, आपने इस प्रस्तुति को एक पाठक के तौर पर जो मान दिया है उसके लिए हार्दिक धन्यवाद.
सहयोग बना रहे भाईजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2014 at 12:56am

आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी ऐसी विशद टिप्पणी से मेरा मन न केवल तृप्त हुआ है बल्कि आत्मीय संतोष भी हो रहा है कि आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा है. आपकी इस भूरि-भूरि प्रशंसा को मैं किस तरह स्वीकारूँ !
सादर आभार आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2014 at 12:47am

आदरणीया राजेश कुमारीजी,  इस उद्धरण के माध्यम से आपने कई बातों को साझा किया है. यह आपके संवेदनशील ही नहीं जागरुक मनस का भी परिचायक है.

आदरणीया, कई अ-हिन्दीभाषी राज्य हिन्दी के साथ दोयम दर्ज़े का व्यवहार यों ही नहीं करते. इसके माकूल कारण भी हैं. उन राज्यों का बना होना उन राज्यों में बोली जाने वाली भाषा नियत करती है. अतः राजनैतिक पार्टियाँ अपना ’काम’ करती हैं. अलबत्ता, एक या दो राज्यों को छोड़ दिया जाय तो आम जन खूब हिन्दी समझता और अपने अंदाज़ में प्रयोग करता है.

मैं ऐसा इसलिये भी कह पा रहा हूँ कि पूर्व के कुछ राज्यों को छोड़ दें तो मैं अमूमन सभी राज्यों में या तो अच्छा खासा समय गुजार चुका हूँ या वहाँ रह चुका हूँ. आमजन हिन्दी का विरोध नहीं करते बल्कि उन्हें इस भाषा से खूब लगाव है. लोग बातचीत के क्रम में हिन्दी भाषा के प्रचलित शब्दों को अपने कथ्य में आकर्षक वाक्यांशों की तरह प्रयुक्त करते हैं, जैसे, बाप रे ! मार डाला ! मेरी बात सुनो ! ए मैन, कैसा है ! ठीक-ठाक ! आदि-आदि.. मैं तमिळनाडु की बात भी कर रहा हूँ, जहाँ हिन्दी-विरोध का लम्बा इतिहास रहा है. परन्तु, वहीं उसी राज्य में सेलम, रामेश्वरम, कन्याकुमारी आदि भी हैं जहाँ आप मस्त होके हिन्दी बोलिये ! या फिर, उसी चेन्नै में साहुकारपेट नाम का भरा-पूरा बहुत बड़ा इलाका है, या, शहर के मुख्य माउण्ट रोड पर रिची स्ट्रीट है, जहाँ खूब हिन्दी बोली और समझी जाती है. 
खैर..

आपको प्रस्तुत रचना प्रभावित कर पायी, इसके लिए सादर धन्यवाद, आदरणीया
शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।... मतले पर…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, कुछ सुझाव पेश…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service