For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर सारे दीवार हो गए ( गीत ) गिरिराज भंडारी

दर सारे दीवार हो गए

**********************

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गये

 

भौतिकता की अति चाहत में

सब सिमटे अपने अपने में

खिंची लकीरें हर आँगन में  

हर घर देखो , चार हो गये

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गए

 

पुत्र कमाता है विदेश में

पुत्री तो ससुराल हो गयी

सब तन्हा कोने कोने में

तनहा सब त्यौहार हो गए

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गए

 

मेरा तेरा हर घर फैला

कपड़े उजले मन है मैला

साजिश रचते हैं रिश्ते अब

कम सबके अधिकार हो गये 

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गए

 

मैं जैसा हूँ तू भी वैसा

ये भी वैसा वो भी वैसा

कौन बचाएगा अब किसको

जब सारे बीमार हो गए

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गए

 

क्या आयेंगे पास पास अब

क्या दिखती है कहीं आस अब

समय जा चुका लगता है अब

अब रिश्ते स्वीकार हो गये

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गए

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 898

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 28, 2014 at 11:35pm

आदरणीया सविता मिश्र जी , आपका शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 28, 2014 at 11:34pm
आदरणीय विजय शंकर भाई , रचना के अनुमोदन के लिए आपका आभार |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 28, 2014 at 11:33pm
आदरणीय जितेन्द्र भाई , गीत की सराहना के लिए आपका शुक्रिया |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 28, 2014 at 10:08pm

आदरणीय गिरिराज सर गीत के भाव बहुत अच्छे लगे, बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by MAHIMA SHREE on August 28, 2014 at 9:29pm

क्या आयेंगे पास पास अब

क्या दिखती है कहीं आस अब

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गए.............वाह बहुत ही समसामयिक गीत हार्दिक बधाई आपको सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2014 at 1:40pm

मैं जैसा हूँ तू भी वैसा

ये भी वैसा वो भी वैसा

कौन बचाएगा अब किसको

जब सारे बीमार हो गए

क्या कहने आदरणीय गिरिराजभाईजी !

आपने गीतों पर जिस आत्मविश्वास से कलमगोई की है, वह आश्वस्तकारी है. 

यों ऐसा लगा, अंतिम बन्द को तनिक और परिमार्जित कर लेना उचित होगा.

सादर शुभकामनाएँ.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2014 at 7:01pm

मेरा तेरा हर घर फैला

कपड़े उजले मन है मैला

साजिश रचते हैं रिश्ते अब

कम सबके अधिकार हो गये 

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गए

गिरिराज भाई बहुत खूब। सटीक परिदृश्य आँखों में तैर गया आज का
आभार
भ्रमर ५

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 27, 2014 at 2:45pm
आदरणीय भाईसाब ..मनोहारी रचना , वर्तमान परिदृश्य में जो कुछ हो रहा है उसे बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है आपने अपनी रचना के माध्यम से .....
Comment by Pawan Kumar on August 26, 2014 at 6:24pm

"" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. ""

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 26, 2014 at 4:56pm

मैं जैसा हूँ तू भी वैसा

ये भी वैसा वो भी वैसा

कौन बचाएगा अब किसको

जब सारे बीमार हो गए

बहुत सुंदर । दुखती रग पकड़ ली मध्‍यम वर्ग की। वा.......ह.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
11 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service