For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों का अंतिम संस्कार ( एक अतुकांत चिंतन ) गिरिराज भंडारी

अच्छा ही करते हैं

कितना भी अपना हो

खून का हो या अपनाया हो प्यार से

मर जाने पर जला देते हैं

मुर्दा शरीर

न जलाएं तो सड़ने का डर बना रहता है

फिर इन्फेक्शन , बीमारी का भय

ज़िंदा लोगों के लिए खतरा ही तो है , किसी का मुर्दा शरीर

 

और फिर भूलने में भी सहायता मिलती है

कब तक याद करें

कब तक रोयें

जीतों को तो जीना ही है

अच्छा ही करते हैं जला के

 

कुछ रिश्ते भी तो मुर्दा हो जाते हैं / सकते हैं

इनका क्या ? 

बोझ ही तो होते हैं मुर्दा रिश्ते ,

लटकाए घूम रहे हैं

फिर से जीवित होने की आस में

मुर्दे भी कभी जीवित होते हैं , कहानियों को छोड़ कर

जो ये होंगे ज़िंदा

भावनाओं के बंटवारे में नाहक की हिस्सेदारी लिए मुर्दा रिश्ते

फ़ाज़िल पड़े, सड़ते, गलते

बीमारी ही फैलायेंगे, धोखे में न रहें

कर ही दिया जाय आज इनका भी

अंतिम संस्कार

जलाने वाले जला दें ,

गाड़ने वाले गाड़ दें , पर

कर ही दें अंतिम संकार

ताकि बचा सकें जीवित रिश्ते

****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2014 at 5:16pm

आदरणीय बड़े भाई विजय की , आपकी सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2014 at 5:15pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रया से सच में उत्साहित हुआ , आपका तहे दिल से  आभार | घिस रहा हूँ अपने को रोज फाइन ट्यूनिंग के लिए आदरणीय , नाउमीद नहीं हूँ पर है कठिन मेरे लिए   , देखिये कब सीख पाता  हूँ |

Comment by vijay nikore on September 4, 2014 at 3:44pm

रिश्तों के विषय पर अंतर्निहित भाव आपकी रचना में बहुत ही सुगमता से प्रस्तुत हुए हैं। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय भाई गिरिराज जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2014 at 6:45am

आदरणीय गिरिराजभाईजी, आपने इस प्रस्तुति के माध्यम से जिस विन्दु को उठाया है वह न केवल प्रासंगिक है बल्कि स्वयं में कई धुरियों को अभिकेन्द्रित करता कई वृत्तों को भी साधता हुआ है.

स्वार्थ और प्रासंगिकता में महान अन्तर है. दोनों के अपने-अपने हेतु हुआ करते हैं. स्वार्थ भी कई रिश्तों के बिगड़ने का कारण होता है, तो प्रासंगिकता में आयी कमी भी ऐसे ही परिणाम का कारण हुआ करती है. परन्तु, जहाँ पहले के कारण मन को क्षोभ अपने सान्द्र रूप में जीन-पर्यंत मथता रहता है, तो दूसरे के कारण मन में एक निर्लिप्तता व्याप जाती है.

आपकी इस वैचारिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय.

आपका अतुकान्त रचनाओं में प्रयासरत होना और प्रस्तुतीकरण के क्रम में लगातार संयत होते जाना आश्वस्त करता है. फिरभी, फाइन-ट्युनिंग का अभ्यास बना रहे, आदरणीय.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2014 at 6:07pm

आदरणीय हरिवल्लभ भाई , रचना के अनुमोदन के लिए आपका दिली आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2014 at 6:06pm

आदरणीय श्याम नारायण भाई , आपका हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2014 at 6:05pm

आदरणीय आशुतोष भाई , रचना के अनुमोदन के लिए आपका बहुत आभार |

Comment by harivallabh sharma on September 2, 2014 at 5:08pm

ठहरा हुआ पानी सड़ने लगता है...रिश्ते भी सड़ते है...सामाजिक रोग ढ़ोना ,कितना समझोता हो निर्वाह कठिन हो जाता है...अतु सुन्दर सन्देश हेतु बधाई.

Comment by Shyam Narain Verma on September 2, 2014 at 11:08am
" बहुत सुन्दर ॥ अतुकांत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ................. "
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 2, 2014 at 10:15am

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..मुर्दों का बोझ ढोना समाज के लिए हितकर नहीं है ..फिर चाहे व्यस्थाओं के मुर्दे हों , आस्थाओं के , भाषाओं के . रीतियों के ...क्योंकि हर जीव्रित में मुर्दा अदृश्य या सूक्षम रूप में ही सही शामिल जरूर होता है ..आपने इस रचना के माध्यम से समाज को अद्भुत सन्देश दिया है जिसके लिए मैं आपको ह्रदय से बधाई देता हूँ सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
7 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service