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ग़ज़ल : ज्ञान थोड़ा बयान ज़्यादा है

बह्र : २१२२ १२१२ २२

आजकल ये रुझान ज़्यादा है

ज्ञान थोड़ा बयान ज़्यादा है

 

है मिलावट, फ़रेब, लूट यहाँ

धर्म कम है दुकान ज्यादा है

 

चोट दिल पर लगी, चलो, लेकिन

देश अब सावधान ज़्यादा है

 

दूध पानी से मिल गया जब से

झाग थोड़ा उफ़ान ज़्यादा है

 

पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको

पर मेरा आसमान ज़्यादा है

 

ये नई राजनीति है ‘सज्जन’

काम थोड़ा बखान ज़्यादा है

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 8, 2014 at 8:38pm

 बहुत बहुत शुक्रिया  Santlal Karun जी

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 23, 2014 at 10:15pm

पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको

पर मेरा आसमान ज़्यादा है

क्या खूब कहा,,,,,,,,,,,,,,बहुत खूब कहा.. ,,,

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on July 23, 2014 at 9:15pm

हर शेर बोलता हुआ है उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2014 at 11:06am

है मिलावटए फ़रेबए लूट यहाँ
धर्म कम है दुकान ज्यादा है ..... कटु सत्य
दूध पानी से मिल गया जब से
झाग थोड़ा उफ़ान ज़्यादा है..... क्या खूब कहा
ये नई राजनीति है ष्सज्जनष्
काम थोड़ा बखान ज़्यादा है ..... सियासत का सच उजागर करता शेर
आदरणीय भाई धर्मेन्द्र जी इस अच्छी गजल के लिए हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2014 at 8:56pm

चोट दिल पर लगी, चलो, लेकिन

देश अब सावधान ज़्यादा है

 

पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको

पर मेरा आसमान ज़्यादा है --------------   आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , खूब सूरत ग़ज़ल औत इन दो अशआर के लिये बधाइयाँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2014 at 3:16pm

मतले ने तो दिल खुश कर दिया आदरणीय धर्मेन्द्रजी. लेकिन इस शेर ने भी कम प्रभावित नहीं किया है -

पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको

पर मेरा आसमान ज़्यादा है

वाह वाह !!

सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 21, 2014 at 12:58pm

आजकल ये रुझान ज़्यादा है

ज्ञान थोड़ा बयान ज़्यादा है...........बहुत सही,बिलकुल यही हो रहा है

 

है मिलावट, फ़रेब, लूट यहाँ

धर्म कम है दुकान ज्यादा है............गजब!!!

 

दूध पानी से मिल गया जब से

झाग थोड़ा उफ़ान ज़्यादा है..............हा हा हा ...बहुत खूब

 

पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको

पर मेरा आसमान ज़्यादा है.............यही सच है, बिना स्पीड ब्रेकर भरे जीवन के लिए

बहुत ही लाजवाब गजल कही आपने आदरणीय धर्मेन्द्र जी. तहे दिल से बधाई स्वीकार कीजियेगा

 

Comment by नादिर ख़ान on July 20, 2014 at 11:06pm

वाह वाह क्या बात है धर्मेंद्र जी बहुत खूब कहा.. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 20, 2014 at 9:35pm

धर्मेन्द्र जी

बाकमाल गजल है i आपको साधुवाद i

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 20, 2014 at 9:00pm

सुन्दर! शब्द कम पर भाव ज्यादा है...

कृपया ध्यान दे...

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