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जब से उस युवा चींटे के पँख निकले थे वह हवा बातें करने लगा था. उसने सभी परिजनों और मित्रजनो पर अपने नए नए निकले पँखों का रुआब डालना शुरू कर दिया था, उसका आत्मविश्वास देखते ही देखते आत्ममुग्धता का रूप धारण कर गया। इस बदले हुए स्वरूप को देख देख उसकी माँ रूह तक काँप जाती. लाख समझाने पर भी बेटा यथार्थ के धरातल पर आने को तैयार न हुआ तो एक दिन बूढ़ी माँ ने अपनी बहू को सफ़ेद जोड़ा देते हुए भरे गले से कहा "इसे अपने पास रख ले बेटी।" 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 3, 2014 at 10:51pm

यहाँ तो माँ ने समझदारी दिखाते हुए बहुत सही निर्णय लिया और दिया , क्युकी भविष्य वो ही देख सकता है जो वर्तमान में जी रहा हो...कोई कहाँ तक किन्ही समस्याओं से लड़ सकता है, एक बार पक्का इरादा करो.

आपकी लघुकथाएं अद्वितीय होती है आदरणीय योगराज जी, आपको ह्रदय से बधाई


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Comment by rajesh kumari on July 3, 2014 at 10:30pm

बच्चों को लेकर तो ममता हमेशा ही असुरक्षा के भाव से ग्रसित होती रहती है उस पर बेटे के बदलते हाव भाव और आज के वक़्त के हालात तथा  भविष्य में आने वाले तूफ़ान को  भांपने में माँ को जरा भी देर नहीं लगती,माँ के उसी अंदेशे को आपने कितनी सुगमता और सुघड़ता से इस लघु कथा में पिरोया है,लघु कथा अपनी बात रखने में सफल हुई ,इस शानदार कथा हेतु बहुत-बहुत बधाई आपको आ० योगराज जी|   

Comment by Vindu Babu on July 3, 2014 at 8:38pm

सच कहा आदरणीय।

आत्ममुग्धता इस कदर ही अंधा बना देती है,लेकिन अनुभवी जनों को को तो भविष्य की आहट रहती  है।

इस सफ़ल अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई आपको।

सादर

Comment by mrs manjari pandey on July 3, 2014 at 8:31pm
आदरणीय योगराज जी अच्छा पाठ है आजकल के बच्चों के लिए खासकर बहुत बहुत बधाई
Comment by नादिर ख़ान on July 3, 2014 at 8:12pm

आदर्णीय योगराज जी .. आपने 4 लाइनों मे 400 पेजों का सार लिख दिया । इतने कम शब्दों मे इतनी  बड़ी बात लिखी जा सकती है ये भी सीखने को मिला । सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 3, 2014 at 7:19pm

आदरणीय योगराज जी

ऊंची उड़ान  का यही हश्र होना  है i  माँ ने भविष्य पढ़ लिया i पर आपने जिस ख़ूबसूरती  से कथा का गठन किया , वह अनिवर्चनीय है i काश ! हम आप से कुछ सीख पाते ! सादर i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 3, 2014 at 7:13pm

आदरणीय योगराज जी

आपकी लघु कथा जभ भी पढता हूँ दिल अश-अश

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 3, 2014 at 6:59pm

wah sir khoob ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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