For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मँच पर बुला बुला कर उन सभी बुज़ुर्गों को सम्मानित किया जा रहा था जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था. उनमें से किसी ने जेल काटी थी, किसी ने अंग्रेज़ों की लाठियां खाईं थीं, कोई सत्याग्रह में शामिल था तो कोई भारत छोडो आंदोलन में. उन सभी की देशभक्ति के कसीदे मँच पर पढ़े जा रहे थे. हाथ में तिरँगा पकडे एक बूढा यह सब देख देख मुस्कुराये जा रहा था. जब भी किसी को सम्मान देने के लिए बुलाया जाता तो वह झट से दूसरों को बताता कि यह उसके गाँव का है, या उसका दोस्त है या उसका जानकार है. पास ही खड़े एक व्यक्ति ने मज़ाक में कहा:
"बाबा तुम्हारे जानने वालों ने देश के लिए इतनी कुर्बानियां दीं, तुम ने भी देश के लिए कुछ किया ?"
"कुछ ख़ास नहीं कर पाया बेटा, बस पैंसठ और इकहत्तर की जंग में दो बेटों को कुर्बान किया है देश के लिए."         
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)     

Views: 922

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 10:36pm

बाबा रे ! 

"कुछ ख़ास नहीं कर पाया बेटा, बस पैंसठ और इकहत्तर की जंग में दो बेटों को कुर्बान किया है देश के लिए." कितना दर्द है इस वाक्य में | सादर वंदन सर आपकी सोच पर \
.

Comment by kanta roy on March 9, 2015 at 11:09pm
बेहद गुढ़ तत्व से गढी हुई यह कथा एक मिशाल कायम करती है । देशभक्ति का जज्बा को दो बेटे को न्योछावर करने वाले का अनदेखा होना कहीं ना कही टीस भी भर देती है पढते हुए । हमेशा की तरह आ. योगराज प्रभाकर सर जी की अद्भुत प्रस्तुति । आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 12:47am

"कुछ ख़ास नहीं कर पाया बेटा, बस पैंसठ और इकहत्तर की जंग में दो बेटों को कुर्बान किया है देश के लिए."

ये कथ्य  बहुत भीतर तक चोट कर गया .... 

उत्कृष्ट लघुकथा .... बहुत बहुत बधाई 

Comment by Mohinder Kumar on November 10, 2014 at 11:52am

गागर मेँ सागर  योगराज जी,

सच मेँ मानव किसी के अन्दर झाँक कर देख ही नहीँ पाता बस चमडी तक ही निगाहेँ निहित रहती हैँ.  भाव भरी लघु कथा के लिये बधाई. 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on October 5, 2014 at 12:06pm

उत्कृष्ट रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2014 at 10:39am

खेद है ये लघु कथा बहुत लेट पढ़ी क्षमा चाहती हूँ ,कहानी का अंत दिल पर तीर  की तरह वार करता है ....कुछ खास नहीं किया केवल दो बेटों को खोया .....इससे ज्यादा क्या कोई कर सकता है जिन बेटों ने देश की खातिर जान गंवाई उनकी जड़ें तो इस वृद्ध के दिल में ही तो हैं कथ्य आप जैसे संवेदन शील रचनाकार के हुनर की बानगी है बहुत ही सुन्दर... उत्कृष्ट लघु कथा क्र लिए आपको दिल से बधाई आ० योगराज जी . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 20, 2014 at 9:18am

आदरणीय प्रधान सम्पादक जी 

स्वतंत्र भारत में हुई 65 और 71 की लड़ाई में जिस पिता नें अपनी बेटों की कुर्बानी दे दी क्या वो किसी भी तरह स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी से कम आंकी जा सकती है? आपकी संवेदनशीलता ऐसे देशभक्त पिता के हृदय की धड़कन को महसूस करती है... और सम्मान समारोहों की भूमिका के अधूरेपन पर भी ध्यान ले जाती है.

इस सार्थक लघुकथा पर हार्दिक बधाई आदरणीय 

सादर 

Comment by Ravi Prabhakar on August 18, 2014 at 2:16pm

आदरणीय प्रधान संपादक महोदय,
प्रस्तुत लघुकथा पर सुधिजन बहुत कुछ कह चुके हैं और मेरा कुछ कहना तो सूर्य को दीया दिखलाने जैसा ही होगा। परन्तु फिर भी कुछ तो जरूर कहूंगा ही.... । आपको ऐसे आइडियाज़ सूझते कैसे हैं ? कैसे आप उड़ती हुई चिडि़या के पंख गिन लेते है ? जहां से हम जैसों की लघुकथा खत्म होती है वहां से आपकी लघुकथा शुरू होती है ! सुभान-अल्लाह ! इतनी पैनी दृष्टि ! एक ओर तो वे लोग जो अपनी छोटी सी कुर्बानी का ढिंढोरा पीटते रहते हैं और कहां आपकी लघुकथा का वह बुर्जुग बलिदानी ! कैसा संवेदनशील और गिद्ध दृष्टि अवलोकन है ? आपकी हृदयस्पर्शी संवेदनाओं और धारदार लेखनी को कोटि-कोटि नमन। कृपा कर लिखते रहा करें और मंच को अपनी भावपूर्ण व अर्थपूर्ण लघुकथाओं से सराबोर करते रहा करें। धन्यवाद ।

Comment by vijay nikore on August 18, 2014 at 3:32am

बहुत पैनी दृष्टि है आपकी, भाई योगराज जी, जो महीन बिन्दुओं को सरलता से सामने ले आती है, और हम पाठकों को सोचने पर बाधित करती है। हार्दिक बधाई इस रचना के योगदान के लिए।

Comment by Shubhranshu Pandey on August 17, 2014 at 9:46pm

आदरणीय योगराज जी, 

स्वतंत्रता दिवस पर एक बहुत ही मार्मिक कथा. पिता ने जो एक बात बस युँ ही कह दी लेकिन उसके पीछे के दर्द को दबाना आसान नहीं है. सुन्दर कथा.

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service