For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समय बीतता गया... (विजय निकोर)

समय बीतता गया...

समय की आँधी क्रान्तियात्रा-सी

धुन्धले पड़ते

प्रतीक्षा और मृत्यु के सीमान्त

लड़खड़ाता साहस, विश्वास

ऐसे में स्नेह को आँधी में

दोनों हाथों से लुटा कर

कुछ मिलता है क्या

आत्मपीड़न के सिवा ?

अकेलापन

कसैलापन रसता

बचा रह जाता है

बीतती मुस्कान ओंठों पर

खाली बोतलों के पास

टूटे हुए गिलास-सी पड़ी ...

            -------

-- विजय निकोर

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on July 16, 2014 at 7:11am

//बहुत सुंदर, सजीव सा चित्रण//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय जितेन्द्र जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2014 at 1:04am

और आँख झपकती नहीं .. डूबती जाती है.. शिथिल पड़ते अंग लसरते चले जाते हैं.. फिर न उठने केलिए.. .

जिस भावदशा को आपने शब्दबद्ध किया है आदरणीय, वह तमस के उस स्वरूप को साझा करता है, जिसे मनोहारी भी कह सकते हैं. नैराश्य भी सुन्दर होता है, आदरणीय.. !.. . है न ?

Comment by vijay nikore on July 5, 2014 at 1:18pm

इस रचना पर आपकी उपस्थिति के लिए और सराहना के लिए आपका आभारी हूँ, आदरणीया सविता जी।

Comment by vijay nikore on July 5, 2014 at 1:16pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शिज्जु शकूर जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2014 at 7:35am

आदरनीय बड़े भाई विजय जी , जीवन की निराशाओं को आपने जो शब्द दिये हैं वो क़ाबिले तारीफ है । बहुत मार्मिक ! आपको दिली बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2014 at 10:20am

पुरानी यादें और अकेले पन के दर्द की जीती जागती तस्वीर आपकी ये रचना ,बहुत खूब ,बधाई आपको आ० विजय निकोर जी | 

Comment by Vindu Babu on July 3, 2014 at 1:18am

निराशा को क्या खूब शब्द मिले हैं। कम शब्दों में यथार्थ बयाँ किया है आपने आदरणीय।

//अकेलापन

कसैलापन रसता

बचा रह जाता है

बीतती मुस्कान ओंठों पर

खाली बोतलों के पास

टूटे हुए गिलास-सी पड़ी ...//...क्या बात है! बहुत सुंदर।

हार्दिक बधाई आपको इस सफ़ल रचना के लिए।

सादर

Comment by Priyanka singh on July 2, 2014 at 4:44pm

बेहद मार्मिक रचना 

इतना प्रेम और वो भी इस तरहा ....लगता है किसी से शिकायत है और वही शब्दों से इस रचना में उतर आई है 

बहुत खुबसूरत और दिल छु लेने वाली रचना है आदरणीय विजय सर ....आपकी सोच और लेखन को नमन .....

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2014 at 2:54pm

आदरनी निकोर जी/ आपकी दर्दीली रचना पर मेरी एक कविता समर्पित है /    आत्मपीडा में अनुभूति सुख की लिए

                                                                                                        दग्ध होता रहा अनुभवों में सदा

                                                                                                         सत्य ही उस करुण के ह्रदय कोश में

                                                                                                         पल रहा कोई जीवंत अनुराग  है i

                                                                                                        सादर i

Comment by Sushil Sarna on July 2, 2014 at 11:03am

आदरणीय विजय जी इस ह्रदयस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई।  सरल शब्द संयोजन एवं सुंदर प्रवाह इसकी विशेषता है। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
3 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब, आदरणीय,  ' नूर ' मैंने आपके निर्देश का संज्ञान ले लिया है! "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बहुत बहुत आभार आ. सौरभ सर ..आप से हमेशा दाद उन्हीं शेरोन को मिलती है जिन पर मुझे दाद की अपेक्षा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और कामयाब अश'आर पर…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. शिज्जू भाई "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,आपको धुआ स्वीकार नहीं हैं तो यह आपका मसअला है. मैंने धुआँ क़ाफ़िया  प्रयोग में…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल के फीचर किए जाने की हार्दिक बधाई।"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह, आदरणीय हरिओम जी, वाह।  आप कुण्डलिया छंद के निष्णात हैं। आपके सहभागिता के लिए हार्दिक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  आपकी छंद रचना और सहभागिता के लिए धन्यवाद।  योगी जन सब योग को,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"छंदों की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रदत्त चित्र को छंद-छंद परिभाषित किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  छंदों की प्रशंसा और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service