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ग़ज़ल -कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

 १२२२      १२२२     १२२२       १२२२

हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं

डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं

मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी

कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको

समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं

सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब

तभी हर बात में कहने लगे वो  हम तुम्हारे हैं

अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब

बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं

संजू शब्दिता  मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 20, 2014 at 10:01am

बयाँ की तुमने जो बातें जिगर में हम उतारे हैं
बुलंदी पर तुम्हारी इस गजल के तो सितारे हैं
करें क्या और तारीफें फकत इतना ही कहना अब
हुए हैं आज सबके ही तुम्हें जो शब्द प्यारे हैं

बहुत बहुत बधाई आ० संजू जी .

Comment by coontee mukerji on June 19, 2014 at 11:54pm

बहुत सुंदर गज़ल ...बार बार पढ़ने को जी चाहता है.सादर

Comment by कल्पना रामानी on June 19, 2014 at 10:32pm

वाह! शानदार गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई प्रिय संजु जी

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2014 at 8:07pm

सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब

तभी हर बात में कहने लगे वो  हम तुम्हारे हैं

अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब

बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं.... क्या बात है ... बहुत बढिया आदरणीया संजू जी हार्दिक बधाई स्वीकार करे

Comment by gumnaam pithoragarhi on June 19, 2014 at 7:35pm

सुन्दर ग़ज़ल हुई................सुंदर ग़ज़ल

Comment by वीनस केसरी on June 18, 2014 at 6:54pm

ग़ज़ल पर कुछ कहना बाद में ...अभी केवल एक शब्द पर बात करनी है

खिलाफ़त
उर्दू के राइज़ (सरल) अल्फ़ाज़ के इस्तेमाल में कभी कभी हम चूक जाते हैं और अर्थ का अनर्थ हो जाता है, अधिक समय नहीं है इसलिए संक्षेप में

खलीफा खिलाफत खिलाफ मुखालफत ये सब लफ्ज़ खल्फ़ धातु से बने हैं
अब इनका अर्थ देखिये
खलीफा - वारिस (राजा के अर्थ में भी प्रयोग होता है)
खिलाफ़त - विरासत, उत्तराधिकार (राजा द्वारा घोषित उत्तराधिकारी) उदाहरण - हुमायूं ने बाबर से खिलाफत पाई
खिलाफ - विरोध (भाव)
मुखालफत - विरोध (क्रिया), विरोध प्रदर्शन 

अब आप अपने शेर में खिलाफत अर्थ के प्रयोग पर विचार कर लें
सादर

Comment by Abhinav Arun on June 18, 2014 at 11:42am
चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको

समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई शब्दिता जी !!
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 6:24am
हौसले फिर भी इतने हैं कि
हम कहाँ किसी से हारे हैं ।
बहत अच्छी पंक्तियाँ है , बधाई .
सादर .
Comment by वेदिका on June 18, 2014 at 12:59am

आहाहा! सुबहानअल्ला! क्या गज़ल लिखी है आपने! 

अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब

बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं .... सीधे दिल तक जाता हुआ शेअर! वाह!

ढेर सारी बधाई प्रिय संजु जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 17, 2014 at 8:53pm

हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं

डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं-----वाह्ह शानदार मतला 

सभी अशआर बहुत कुछ बोल रहे हैं ,सुन्दर ग़ज़ल हुई 

बहुत- बहुत बधाई प्रिय संजू जी 

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