For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिन्होंने रास्तों पर खुद कभी चलकर नहीं देखा
वही कहते हैं हमने मील का पत्थर नहीं देखा

.
मिलाकर हाँथ अक्सर मुस्कुराते हैं सियासतदाँ
छिपा क्या मुस्कराहट के कभी भीतर नहीं देखा
.

उन्हें गर्मी का अब होने लगवा अहसास शायद कुछ
कई दिन हो गए उनको लिए मफलर नहीं देखा
.

सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन
बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा
.

फ़क़त सुनकर तआर्रुफ़ हो गया कितना परेशां वो
अभी तो उसने मेरा कोई भी तेवर नहीं देखा
.

अभी तो बाबुओं ने ही उसे दौड़ा के रक्खा है
अभी तो उसने ढंग का एक भी अफसर नहीं देखा
.

ये जैसलमेर की जलती ज़मीं कुछ पूछती तुझसे
बता ऐ अब्र तूने क्यूं कभी मुड़कर नहीं देखा
.

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 724

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on June 7, 2014 at 6:16pm
राणाजी , सपाट शब्दों में साधारण की दुर्गति पर सियासतदानोंकी कारगुजारी का स्पष्ट उल्लेख हुआ है |और रचना निष्पक्षता के धरातल पर उतरी है |आभार इस यथार्थपरक रचना केलिए |
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 1:34pm

आदरणीय राणा जी ..एक से बढ़कर एक शेर ..वर्तमान के घटनाक्रम पर चुटीला व्यंग्य करता ..कहीं प्रशासनिक व्यवस्थ पर सवाल उठाता ...बैबिध्य पूर्ण बिषयों को छोटी  शानदार ग़ज़ल ..काबिले तारीफ़ इस ग़ज़ल की दिल से तारीफ़ करता हूँ .सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 7, 2014 at 10:58am

सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन
बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा -----बहुत कुछ कह दिया इस शेर ने ......शानदार .....जख्म कुरेदता हुआ 
ये जैसलमेर की जलती ज़मीं कुछ पूछती तुझसे 
बता ऐ अब्र तूने क्यूं कभी मुड़कर नहीं देखा -------सच  जहाँ जन्मते थे वो पहाड़ों से भी खफ़ा हो गए ....सामयिक शेर बहुत उम्दा 
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी आ० राणा जी ढेरों दाद कबूलें ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 6, 2014 at 8:42am

एक से बढ़कर एक खूबसूरत शेर हैं बहुत बहुत बधाई आदरणीय राणा साहब इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 6, 2014 at 12:32am

बहुत बेहतरीन गजल हुई आदरणीय राणा साहब, शुरूआती मतले ने ही कहर ढा दिया, दिली बधाई स्वीकार कीजिये 

Comment by coontee mukerji on June 5, 2014 at 5:22pm

राणा जी आप बहुत दिनों बाद दर्शन देते हैं लेकिन जब भी आते आइना दिखा जाते हैं...आपके शेर की खूबी....

जिन्होंने रास्तों पर खुद कभी चलकर नहीं देखा
वही कहते हैं हमने मील का पत्थर नहीं देखा....इस कटाक्ष में कितना कुछ कह गये.साधुवाद.

Comment by वेदिका on June 5, 2014 at 4:49pm
सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन
बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा
इस नाराजगी पर क्या शुभकामना व्यक्त हो!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2014 at 12:26pm

फकत सुनकर तआर्रुफ़ ---- बेहतरीन i

शुभ कामना i

Comment by Meena Pathak on June 5, 2014 at 10:29am

लाजवाब .. बेहद उम्दा .. बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service