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ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-बात जो तुम से निभाई न गई

२१२२, ११२२, २२/ ११२   

.

बात जो तुम से निभाई न गई,
बस वही हम से भुलाई न गई.
....

वो नई रोज़ बना ले दुनियाँ,  
हम से किस्मत भी बनाई न गई.

....

थी दरो दिल पे छपी इक तस्वीर,
जल गया जिस्म, मिटाई न गई.

....
बस मेरे हक़ में बयाँ देना था, 
उन से आवाज़ उठाई न गई.

....

ख्व़ाब था दिल से मिला लें हम दिल,
आँख से आँख मिलाई न गई.  

....

हम गले मिलते भला किससे, कहो!
हमसे तो ईद मनाई न गई.

....

साँस थी, जान थी बाकी मुझ में,
दिल न था नब्ज़ भी पाई न गई.   

............................................
मौलिक व अप्रकाशित 
निलेश 'नूर'

Views: 659

Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on November 22, 2013 at 1:32pm

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by vandana on November 22, 2013 at 7:53am

थी हया आँख में या थे वो ख़फ़ा, 
उन से पलकें ही उठाई न गई.

बहुत खूब आदरणीय निलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 22, 2013 at 6:40am

शुक्रिया सभी मित्रो और गुरुजनों का. आप की दाद से हौसला मिलता है बेहतर रचने का ... धन्यवाद  

Comment by वेदिका on November 22, 2013 at 12:14am

बात जो तुम से निभाई न गई,
बस वही हम से भुलाई न गई. ,,,वाह बहुत खूब मतले से शुरूआत हुयी है!

वो नई रोज़ बना ले दुनियाँ,  
हम से किस्मत भी बनाई न गई.॥ बहुत खूब दर्द उकेरा है आपने 

साँस थी, जान थी बाकी मुझ में,
दिल न था नब्ज़ भी पाई न गई.  .....मेरे ख्याल से गज़ल का सबसे असरदार शेअर 

बहुत बहुत शुभकामनायें खूबसूरत गज़ल के लिए आ0 नीलेश जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 21, 2013 at 9:41pm

बहुत बढ़िया आदरणीय निलेश जी बधाई स्वीकार करें

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 21, 2013 at 9:34pm

बहुत सुन्दर है हर एक शेर ग़ज़ल का 

तहे दिल से मुबारकबाद आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 21, 2013 at 6:08pm

आदरणीय नीलेश भाई , !!!!!! बहुत उम्दा गज़ल कही है , आपको तहे दिल से मुबारक़ बाद !!!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 21, 2013 at 3:47pm

बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय जय हो

दिली दाद क़ुबूल कीजिये

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 21, 2013 at 1:45pm

नूर जी

हमेशा की तरह  

असरदार गजल  i

मुबारक हो i

Comment by Saarthi Baidyanath on November 21, 2013 at 11:21am

वो नई रोज़ बना ले दुनियाँ,   
हम से किस्मत भी बनाई न गई.

थी हया आँख में या थे वो ख़फ़ा, 
उन से पलकें ही उठाई न गई.

साँस थी, जान थी बाकी मुझ में,
दिल न था नब्ज़ भी पाई न गई.....उम्दा ग़ज़ल ...उम्दा अशआर ..वाह साहब :)

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