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जलाऊं दीपक कैसे

कुल बीते दिन चार ,चमन का खोया माली

रोते पुहुप हजार ,कहाँ कैसी दीवाली

व्यथित उत्तराखंड ,तबाही कैसे भूले

आँसू मिश्रित आग ,जलेंगे कैसे चूल्हे

बिना तेल के दीप ,जलेगी कैसे बाती

बिना राग संगीत ,मुरलिया कैसे गाती

मृत्यु नृत्य निर्बाध ,जहाँ खेली थी  होली

सने लहू से द्वार ,कहाँ बैठे रंगोली

कुदरत ने दी मार ,धरा अम्बर तक रूठे

रह-रह उठते टीस ,मिले जो जख्म अनूठे

औरों का दुख देख , मनाऊं खुशियाँ  कैसे

बगल घर अन्धकार , जलाऊं दीपक  कैसे 

खुशियों के हों रंग ,भरे उनकी भी झोली

 चौखट जाए सूख   ,सजे उस पर  रंगोली

मिल जाएं परिवार ,बढ़े उनकी खुशहाली 

भरो प्रेम से जख्म , मनाओ फिर  दीवाली

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 30, 2013 at 10:19am

इस भावुक रचना को पढ़कर, समझ आता है कि आप जैसे रचनाकार का हृदय, एक अपार भावुकता को अपने अंदर समेटे हुए है, वरना आज के इस भागमभाग व् स्वार्थ से भरे संसार में कौन किसके बारे में सोचता है, जहाँ अपने ही अपनों के दुखों को छोड़, दूर भागते हैं, महज एक झूठी, खोखली खुशी को पाने के लिए, आपकी इस मर्म से भरी, रचना पर आपको हृदयतल से बधाईयां, आदरणीया राजेश जी..

सादर नमन

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2013 at 10:03am

प्राकृतिक आपदा से दुखी मन से कैसे दिवाली मनाएं | अभी तो आपदा ग्रस्त इलाके की खुशाली की कामना ही की जा सकती है |

मार्मिक एवं संवेदनशील शब्द रचना के लिए हार्दिक बधाई आ. राजेश कुमारी जी 

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 10:43pm

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा का शिकार हुए लोगों के परिजनों के मर्म को भाँपकर अच्छी एवं सारगर्भित प्रस्तुति है आ0 राजेश कुमारी जी.... बहुत बहुत बधाई आपको....

Comment by MAHIMA SHREE on October 29, 2013 at 9:35pm

बगल घर अन्धकार , जलाऊं दीपक  कैसे 

खुशियों के हों रंग ,भरे उनकी भी झोली

 चौखट जाए सूख   ,सजे उस पर  रंगोली

मिल जाएं परिवार ,बढ़े उनकी खुशहाली 

भरो प्रेम से जख्म , मनाओ फिर  दीवाली.... मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीया राजेश दी हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 29, 2013 at 7:52pm

आदरणीया राजेश दीदी वाकई भावनाओं का मार्मिक चित्रण है, इस ह्रदयस्पर्शी रचना के लिये दाद कुबूल करें

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 29, 2013 at 7:17pm

आदरणीया इस भ्‍ाावपूर्ण एवं सारगर्भित संदेश देती इस रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by विजय मिश्र on October 29, 2013 at 6:01pm
आपके इस गीत में बरबस पाठकों की श्रद्धा आकर्षित करने की क्षमता है .सचमुच जब समूचा परिवेश दुखी हो तो मन में उत्सव का आग्रह कहाँ से आए . साधुवाद और आपकी इस वेदना के प्रति आदर राजेशजी .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 29, 2013 at 5:21pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , बहुत भाव पूर्ण , बहुत सार्थक , रचना लगी !!!! बहुत सही दिशा की ओर इंगित कर रही है आपकी रचना !!!

उत्तराखंड मे सच मे ऐसा ही हाल होगा !!!! आपको हार्दिक बधाई !!!!!

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