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ग़ज़ल - तभी बन्दर यहाँ के चिढ़ गये हैं // --सौरभ

१२२२  १२२२ १२२

इन आँखों में जो सपने रह गये हैं
बहुत ज़िद्दी, मगर ग़मख़ोर-से हैं

अमावस को कहेंगे आप भी क्या
अगर सम्मान में दीपक जले हैं

अँधेरों से भरी धारावियों में
कहें किससे ये मौसम दीप के हैं

प्रजातंत्री-गणित के सूत्र सारे
अमीरों के बनाये क़ायदे हैं

उन्हें शुभ-शुभ कहा चिडिया ने फिर से
तभी बन्दर यहाँ के चिढ़ गये हैं

उमस बेसाख़्ता हो, बंद कमरे-
कई लोगों को फिर भी जँच रहे हैं

करेगा कौन मन की बात, अम्मा !
सभी टीवी, मुबाइल में लगे हैं

 

सड़क पर शोर से कब है शिकायत,
चढ़ी नज़रें मुखर आवाज़ पे हैं !

नयी फुनगी दिखी है फिर तने पर 

बया की चोंच में तिनके दिखे हैं
*****************

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by रामबली गुप्ता on October 20, 2016 at 5:56pm
वाह वाह और वाह। नमन है आपकी लेखनी को आद0 सौरभ सर वाकई लाज़वाब ग़ज़ल पढ़ने को मिली है। बहुत बहुत बधाई।
Comment by Sushil Sarna on October 20, 2016 at 4:02pm

करेगा कौन मन की बात, अम्मा !
सभी टीवी, मुबाइल में लगे हैं

वाह आदरणीय सौरभ सर कितनी हकीकत बयानी है इस शेर में। ममता की मार्मिकता को इस शेर में दूर तक महसूस किया है मैंने। अब सब रिश्ते उपकरण हो गए और सारे उपकरण रिश्तों में बदल गए ... वाह रे वर्तमान ... वाह रे नयी सभ्यता ... इस खूबसूरत अशआर वाली दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल की गहराईयों से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 20, 2016 at 12:35pm

//अँधेरों से भरी धारावियों में
कहें किससे ये मौसम दीप के हैं//

यह शेअर बहुत दिन तक याद रहेगाI उम्दा ग़ज़ल हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें आ० सौरभ भाई जीI 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 20, 2016 at 12:25pm
उम्दा सृजन !सादर नमन!
Comment by Shyam Narain Verma on October 20, 2016 at 11:38am
क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने वाह बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये  सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 20, 2016 at 8:23am

आदरणीय सौरभ भाई , बेहतरीन गज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को , मतला दमदार है और सभी अशआर काबिले दाद हैं ।

ये पाँच अशार बहुत खास लगे , दिल से बधाइयाँ गज़ल के लिये ।

अमावस को कहेंगे आप भी क्या
अगर सम्मान में दीपक जले हैं    -  अब तो यही हो रहा है , आम बात है , दुखद है

प्रजातंत्री-गणित के सूत्र सारे
अमीरों के बनाये क़ायदे हैं   -----  सच बात कही आपने

उन्हें शुभ-शुभ कहा चिडिया ने फिर से
तभी बन्दर यहाँ के चिढ़ गये हैं----         जलन है भाई जी , साथ मे भविष्य  को ले कर भय भी

करेगा कौन मन की बात, अम्मा !
सभी टीवी, मुबाइल में लगे हैं  -----    बुज़ुर्गों का दुख पूरी तरह बाहर आया है .... बहुत खूब

नयी फुनगी दिखी है फिर तने पर 

बया की चोंच में तिनके दिखे हैं   ....    नई सुबह की संभावना ..  बहुत बहुत बधाई आदरणीय आपको ।

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