For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गहरी दरारें (लघु कविता)

********************

जैसे किसी तालाब का

सारा जल सूखकर

तलहटी में फट गई हों गहरी दरारें 

कुछ वैसी ही लग रही थी

उस वृद्ध की एड़ियां 

शायद तपा होगा वह भी 

उस तालाब सा कर्त्तव्य की धूप में 

अर्पित कर दिया होगा

अपने रक्त का कतरा - कतरा

अपनों को पालने में।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 56

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 9, 2025 at 7:20pm

आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी,

प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की एड़ियों की तुलना सूखे तालाब की तलहटी में पड़ी गहरी दरारों से करना कविता को मारक बना रहा है। एक वृद्ध के जीवन के कठिन परिश्रम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा को दर्शाती ये पंक्तियां अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में सफल हुईं हैं। "कर्त्तव्य की धूप" और "रक्त का कतरा-कतरा" जैसे प्रतीकात्मक शब्द जीवन की कठिनाइयों और अपनों के लिए समर्पण को गहराई से शाब्दिक करते हैं। कथ्य  की तार्किकता के संदर्भ में आदरणीय सौरभ पाण्डे सर का मार्गदर्शन तो मिल ही गया है। इस प्रभावकारी प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 19, 2025 at 8:47pm

परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 19, 2025 at 2:01pm

ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ एक प्रारम्भ से प्रकाशित होती रही हैं। ऐसी कविताओं की विशेषताओं में प्रमुख विशेषता है, निहित शब्दों का मितव्ययिता के साथ प्रयोग। अंतर्निहित भाव कम से कम शब्दों में अभिव्यक्त होते हैं। अभिव्यक्तियों में निहितार्थ तिर्यक रूप से निस्सृत होते हैं। अभिमत इंगितों में संप्रेषित होता है। कहन की शैली व्यंजनात्मक या व्यंग्यात्मक होती है। व्यंग्य भी तीखा, चुहचुहाता हुआ, जो हृदय को खखोर कर रख दे। अर्थात भावाभिव्यक्ति में शब्द जितना कुछ खोलते हैं, उससे अधिक अलोत रखते हैं। सम्प्रेषण के क्रम में तार्किकता विवेक के चरम पर होती है। 

अर्थात, ऐसी कविताएँ एक पाठक की मानसिक अवस्था की निस्संदेह परीक्षा लेती हैं। इन संदर्भों में नई कविता के पुरोधा अज्ञेय, क्षणिकाओं की सिद्धहस्त सरोजिनी प्रीतम की प्रस्तुतियों को परखा जा सकता है। 

इस हिसाब से प्रस्तुत कविता विशेष रूप से अभ्यास मांगती है। 

आप तालाब की तलहटी के सापेक्ष वृद्ध की एँड़ियों को देखते हुए अचानक उस वृद्ध के तपने की बात करने लगते हैं। और यहीं आपके कवि का अनुभव और तार्किकता, दोनों जवाब दे जाते हुए दीखते हैं। 

प्रस्तुत कविता पर पुनर्प्रयास - 

जैसे

किसी तालाब की तलहटी में 

उभर आती हैं गहरी दरारें 

सारा जल सूख जाने के बाद 

वैसी ही लगीं 

उस वृद्ध की एँड़ियाँ 

तपी होंगीं वे भी 

कर्त्तव्य की दौड़-धूप में 

अर्पित कर दिया है इनने 

रक्त का एक-एक कतरा 

विश्वास है, आप मेरे कहे से आश्वस्त हो सके होंगे। 

शुभ-शुभ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2025 at 9:30pm

आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
21 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service