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ग़ज़ल- 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)

ग़ज़ल-  8 + 8 + 8   (रोला मात्रिक)

किस सागर में  जान मिलेगी  धार समय की 

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की 

मोल समय का  उससे जाकर  पूछो माधो 

नासमझी में  जिसने झेली  मार समय की 

जीवन नैया  पार हुई बस  उस केवट से 

कसकर थामी  जिसने  भी पतवार  समय की 

आलस छोड़ो  साहस धारो  कर्म करो तुम 

उठ जाओ अब सुनकर तुम फटकार समय की 

कद्र तुम्हारी  ये संसार करेगा उस दिन 

कद्र करोगे  जिस दिन बरखुर्दार समय की 

पल घुँघरू है  दिवस -निशा दो पायल समझो 

गूंज रही है सदियों से झंकार समय की 

अवसर देता  वक़्त सभी को  नृप बनने का

दुर्भागी  ठुकरा देते  मनुहार  समय की

काट रही है  सदियों से जंगल भावी के                                 भावी = भविष्य काल 

पैनी होती  जाती है  तलवार समय की  

तुम 'खुरशीद' उजाले बोते  जाओ हर पल 

जीतोगे तुम  इक दिन होगी  हार समय की 

 मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by कंवर करतार on January 1, 2015 at 9:58pm

कद्र तुम्हारी  ये संसार करेगा उस दिन 

कद्र करोगे तुम जिस दिन बरखुर्दार समय की 

पल घुँघरू है  दिवस -निशा दो पायल समझो 

गूंज रही है सदियों से झंकार समय की

खुर्शीद भाई , उम्दा ग़ज़लकार  हैं आप I सुंदर रचना के लिए बधाई कबूल करें I  

Comment by somesh kumar on January 1, 2015 at 8:36pm

पल घुँघरू है  दिवस -निशा दो पायल समझो 

गूंज रही है सदियों से झंकार समय की 

अवसर देता  वक़्त सभी को  नृप बनने का

दुर्भागी  ठुकरा देते  मनुहार  समय की

ये दोनों पंक्तिया ज़्यादा पसंद आई |पूरी गज़ल ही समय की कद्र का संदेश देती है |हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 8:01pm

आदरणीय खुर्शीद जी बेहद उम्दा ग़ज़ल हुई है एक एक अशआर सूक्ति की तरह लग रहा है आपको हार्दिक बधाई ....

मुझे केवल इस पंक्ति को गुनगुनाने के थोड़ी समस्या हुई ....  

कद्र करोगे तुम जिस दिन बरखुर्दार समय की 

Comment by दिनेश कुमार on January 1, 2015 at 8:00pm
Waaaah.....waaaaah ...बेहतरीन रचना ।

पल घुँघरू है दिवस -निशा दो पायल समझो

गूंज रही है सदियों से झंकार समय की ....kya baat hai...सभी अशआर टाप क्लास हैं। बरखुर्दार
वाले शे'र में लय मुझे टूटती लगी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 7:49pm

आदरणीय खुर्शीद जी क्या खूूब ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई हर शे'र मानीखेज है 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2015 at 7:32pm

khutsheed jee

बहुत उम्दा i आप  रचना में जान डाल  देते हैं i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 1, 2015 at 7:31pm

मोल समय का  उससे जाकर  पूछो माधो 

नासमझी में  जिसने झेली  मार समय की....

बहुत ही सहज़ व सरल शब्‍दों में इतना विस्‍तृत रूप दिया आपने आदरणीय खुर्शीद जी, हार्दिक बधाई,

आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को नव-वर्ष २०१५ की ढेरों शुभकामनाये

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on January 1, 2015 at 6:57pm

आदरणीय 'खुर्शीद' जी!

काट रही है  सदियों से जंगल भावी के  

पैनी होती  जाती है  तलवार समय की ..... इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिये आदरणीय

तुम 'खुरशीद' उजाले बोते  जाओ हर पल 

जीतोगे तुम  इक दिन होगी  हार समय की... वाह वाह क्या उत्साह वर्धक व प्रेरक पंक्ति है इसपे तो कौम की कौम फ़ना हो जाए... आपको हार्दिक बधाई आदरणीय..

Comment by Shyam Narain Verma on January 1, 2015 at 4:03pm

बहुत खूब .... शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

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