बह्र : २१२२ १२१२ २२
आजकल ये रुझान ज़्यादा है
ज्ञान थोड़ा बयान ज़्यादा है
है मिलावट, फ़रेब, लूट यहाँ
धर्म कम है दुकान ज्यादा है
चोट दिल पर लगी, चलो, लेकिन
देश अब सावधान ज़्यादा है
दूध पानी से मिल गया जब से
झाग थोड़ा उफ़ान ज़्यादा है
पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको
पर मेरा आसमान ज़्यादा है
ये नई राजनीति है ‘सज्जन’
काम थोड़ा बखान ज़्यादा है
---------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया Santlal Karun जी
पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको
पर मेरा आसमान ज़्यादा है
क्या खूब कहा,,,,,,,,,,,,,,बहुत खूब कहा.. ,,,
हर शेर बोलता हुआ है उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई
है मिलावटए फ़रेबए लूट यहाँ
धर्म कम है दुकान ज्यादा है ..... कटु सत्य
दूध पानी से मिल गया जब से
झाग थोड़ा उफ़ान ज़्यादा है..... क्या खूब कहा
ये नई राजनीति है ष्सज्जनष्
काम थोड़ा बखान ज़्यादा है ..... सियासत का सच उजागर करता शेर
आदरणीय भाई धर्मेन्द्र जी इस अच्छी गजल के लिए हार्दिक बधाई ।
चोट दिल पर लगी, चलो, लेकिन
देश अब सावधान ज़्यादा है
पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको
पर मेरा आसमान ज़्यादा है -------------- आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , खूब सूरत ग़ज़ल औत इन दो अशआर के लिये बधाइयाँ ॥
मतले ने तो दिल खुश कर दिया आदरणीय धर्मेन्द्रजी. लेकिन इस शेर ने भी कम प्रभावित नहीं किया है -
पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको
पर मेरा आसमान ज़्यादा है
वाह वाह !!
सादर
आजकल ये रुझान ज़्यादा है
ज्ञान थोड़ा बयान ज़्यादा है...........बहुत सही,बिलकुल यही हो रहा है
है मिलावट, फ़रेब, लूट यहाँ
धर्म कम है दुकान ज्यादा है............गजब!!!
दूध पानी से मिल गया जब से
झाग थोड़ा उफ़ान ज़्यादा है..............हा हा हा ...बहुत खूब
पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको
पर मेरा आसमान ज़्यादा है.............यही सच है, बिना स्पीड ब्रेकर भरे जीवन के लिए
बहुत ही लाजवाब गजल कही आपने आदरणीय धर्मेन्द्र जी. तहे दिल से बधाई स्वीकार कीजियेगा
वाह वाह क्या बात है धर्मेंद्र जी बहुत खूब कहा..
धर्मेन्द्र जी
बाकमाल गजल है i आपको साधुवाद i
सुन्दर! शब्द कम पर भाव ज्यादा है...
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