For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल : तंग हो हाथ पर दिल बड़ा कीजिए//शकील जमशेदपुरी

बह्र : 212/212/212/212
———————————————

तंग हो हाथ पर दिल बड़ा कीजिए
चाहे जितने भी गम हों हंसा कीजिए

ति​तलियां लौट जाती हैं हो कर उदास
सुब्ह में फूल बन कर खिला कीजिए

है जलन उनको मैं चाहता हूं तुम्हें
मत सहेली की बातें सुना कीजिए

प्यार हो जाएगा है ये दावा मेरा
आप गजलें हमारी पढ़ा कीजिए

चांद से आपकी क्यों बहस हो गई
ऐसे वैसों के मुंह मत लगा कीजिए

यूं मकां है मगर घर ये हो जाएगा
बनके मेहमान कुछ दिन रहा कीजिए

फिर कहीं होने पाए न ये हादसा
दिल किसी का न टूटे दुआ कीजिए

यादों की इन सलाखों में घुटता है मन
हो गई इंतहा अब रिहा कीजिए

बस गुजारिश है इतनी मेरी आपसे
हंस के दुनिया से मुझको विदा कीजिए

-शकील जमशेदपुरी

________________________________

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1021

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 28, 2014 at 11:50am

बहुत ही अच्छी गज़ल कही है। बधाई।

Comment by SALIM RAZA REWA on April 27, 2014 at 8:36pm

तंग हो हाथ पर दिल बड़ा कीजिए
चाहे जितने भी गम हों हंसा कीजिए

ति​तलियां लौट जाती हैं हो कर उदास
सुब्ह में फूल बन कर खिला कीजिए

बस गुजारिश है इतनी मेरी आपसे

हंस के दुनिया से मुझको विदा कीजिए

shakil bhai bahut khubsurat gazal hui haih mubarakbad kubul kijie 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2014 at 2:31pm

है जलन उनको मैं चाहता हूं तुम्हें
मत सहेली की बातें सुना कीजिए....बिलकुल सही 

प्यार हो जाएगा है ये दावा मेरा
आप गजलें हमारी पढ़ा कीजिए.....आपका दावा हकीकत बने 

यादों की इन सलाखों में घुटता है मन
हो गई इंतहा अब रिहा कीजिए..बहुत बढ़िया ...भाई शकील जी इस कामयाब ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by शकील समर on April 24, 2014 at 6:08pm

जी...जी आदरणरीय गिरि​राज सर, सहमत हूं आपकी बात से दुरुस्त कर लूंगा। आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 6:05pm

आदरनीय शकील भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अशाअर लाजवाब हुये हैं , दिली दाद कुबूल करें ॥

एक  छोटी बातें कहना चाहता हूँ  - हंस को हँस कर लीजियेगा , क्योंकि हंस भी एक शब्द है , एक पक्षी का नाम है ।

Comment by शकील समर on April 24, 2014 at 4:36pm

आप सभी का हृदय से आभारी हूं।

Comment by विजय मिश्र on April 24, 2014 at 3:03pm
शकील भाई ,
"प्यार हो जाएगा है ये दावा मेरा
आप गजलें हमारी पढ़ा कीजिए

चांद से आपकी क्यों बहस हो गई
ऐसे वैसों के मुंह मत लगा कीजिए |"

गनीमत है कि इस मिजाज के दो ही मिसरे हैं ,दो-तीन और होते तो कितनों का दिल निकलकर बाहर आ जाता ! बेहतरीन गोई ,दिली दाद कबूल फरमाएँ |
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2014 at 11:31am

खूबसूरत अश’आर हैं शकील साहब। दाद कुबूल कीजिए

Comment by Ashish Srivastava on April 24, 2014 at 10:13am
Bhai bas ek hi baat samjh aayi
Khoobsurat shilp khoobsurat bhaav

Aanad aa gaya
Comment by umesh katara on April 23, 2014 at 8:03pm

वाहहहहहहह वाहहहहहहहहहहहह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service