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गजल : बिंदी, काजल, झुमके, बेसर, चूड़ियां//शकील जमशेदपुरी

बह्र : 2122/2122/212


बिंदी, काजल, झुमके, बेसर, चूड़ियां
पास वो रखतीं हैं कितनी बिजलियां

आज फिर उसने किया है मुझको याद
आज फिर अच्छी लगीं हैं हिचकियां

खुशबू तेरी लाएगी बाद-ए-सबा          [बाद-ए-सबा = सुब्ह की हवा]  
खोल दी कमरे की मैंने खिड़कियां

तेरी जुल्फों से उलझती है हवा
काश मैं भी करता यूं अठखेलियां

दिल तो तेरे नाम से मंसूब था          [मंसूब= निर्दिष्ट, Assign]
यूं बहुत आई थी दर पे लड़कियां

जब से आई है मेरे कॉलेज में वो
अच्छी लगती हैं नहीं अब छुटि्टयां

नाम तेरा आ गया लब पर मेरे
हो गईं मुझसे खफा सब तितलियां

रूठने का राज मैं समझा 'शकील'
कान भरतीं हैं तुम्हारी बालियां

-शकील जमशेदपुरी

_____________________

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Satyanarayan Singh on May 29, 2014 at 10:00pm

सुन्दर एवं शानदार ग़ज़ल कहने हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ. शकील जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2014 at 3:15am

मज़ा आ गया.. दाद कुबू्ल करें, शकील भाई.

जब से आई है मेरे कॉलेज में वो  ...    वो ? ये अधिक नहीं है ?

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2014 at 11:36am

बहुत ही सुन्दर गजल! आदरणीय शकील जी!

Comment by रमेश कुमार चौहान on May 5, 2014 at 10:10pm

रूठने का राज मैं समझा 'शकील'
कान भरतीं हैं तुम्हारी बालियां---------अच्छा प्रयोग
बधाई बधाई

Comment by suvarna on May 5, 2014 at 8:51pm

खुशबू तेरी लाएगी बाद-ए-सबा            
खोल दी कमरे की मैंने खिड़कियां

रूठने का राज मैं समझा 'शकील'
कान भरतीं हैं तुम्हारी बालियां............ बढ़िया ग़ज़ल शकील जी 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on May 5, 2014 at 8:45pm

नाम तेरा आ गया लब पर मेरे
हो गईं मुझसे खफा सब तितलियां

वाह खूबसूरत ग़ज़ल भाई शकील जी !!

Comment by coontee mukerji on May 4, 2014 at 12:35am

बिंदी, काजल, झुमके, बेसर, चूड़ियां
पास वो रखतीं हैं कितनी बिजलियां.....क्या बात है. बिजलियाँ क्या गिरती भी थी...शकील भाई.दाद कूबूल करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 3, 2014 at 7:32pm

आदरणीय शकील भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , दिली दाद कुबूल करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 12:24pm

बहुत खूब आदरणीय शकील भाई अच्छी ग़ज़ल कही है आपने

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 3, 2014 at 11:18am

नाम तेरा आ गया लब पर मेरे हो गईं मुझसे खफा सब तितलियां

 

रूठने का राज मैं समझा 'शकील' कान भरतीं हैं तुम्हारी बालियां

आदरणीय शकील जी
बहुत खूब.. क्या कहने
इस शरारती ग़ज़ल पर मेरी तरफ से मुबारकबाद. 

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