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मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

१२१२     ११२२    १२१२     २२

हसींन जुल्फ कहीं पर बिखर रही होगी

हवा है महकी उधर से गुजर रही होगी

 

फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम

कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी

 

जमी पे आज हैं बिखरे तमाम आंसू यूं

ग़मों में डूबी ये शब किस कदर रही होगी

 

मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी

 

जो जान हम पे छिड़कती उसे नहीं देखा

वो झिर्रियों से ही तकती नजर रही होगी

 

हसी के भाल की बिंदी फलक पे देखी है

बड़ी हसीन सी यारों सहर रही होगी

 

  

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Anurag Singh "rishi" on April 17, 2014 at 3:27pm

वाह क्या कहने सर बहुत उम्दा अशआर कहे हैं आदरणीय

हसींन जुल्फ कहीं पर बिखर रही होगी

हवा है महकी उधर से गुजर रही होगी

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 17, 2014 at 11:04am

मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी...........जिंदाबाद शेर

बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय डा.आशुतोष जी, दिली बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 11:00am

मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी ।

आदरणीय भाई आशुतोष जी क्या खूब ग़ज़ल कही , इस शे'र के जरिये आपने सचमुच लड़कपन के दिन याद दिल दिए . हार्दिक बधाई .

Comment by Neeraj Nishchal on April 16, 2014 at 7:19pm

मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी ।

क्या कहूँ आदरणीय आशुतोष जी इस मोबाइल massage सोशल साइट के ज़माने में
आपकी ये पंक्तियाँ उस मोहब्बत की दास्ताँ फिर से कहती हैं जिसमें खतों का अहम रोल
होता था। ......................
बहुत ही बेहतरीन बहुत ही खूबसूरत ।

Comment by इमरान खान on April 16, 2014 at 3:06pm
डा0 साहब बेहतरीन और कामयाब गज़ल पर मेरी दाद कुबूल करें।

मेरे ख्याल से ज़ुल्फ का इस्तेमाल बहुवचन की तरह होता है जबकि यहाँ एकवचन की तरह लिया गया है, मतला दोबारा देखियेगा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 16, 2014 at 2:04pm

मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी-----जबरदस्त शेर ...क्या कहने !!!

 बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई आपको 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 16, 2014 at 12:51pm

वाह्ह सर क्या खूब ग़ज़ल हुई है। निशब्द!!!!

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