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!!!! टूटते विश्वास को !!!! नवगीत !!!! ( गिरिराज भंडारी )

!!!! टूटते विश्वास को !!!! नवगीत !!!!

किस तरह से

मै बचा लूँ

टूटते विश्वास को

 

लोग कहते,

भूल जाऊँ

आँख मून्दे ,

कान रून्धे

चुप रहूँ मै , बस सहूँ मै,

इस मिले संत्रास को

 

जब नज़र में

हो उपेक्षा

और अच्छे

की अपेक्षा 

क्यों न मानूँ ,आज अन्दर,

से हुये आभास को

 

भूत की यादें

सुखद है

दिल मगर कब

मानता है

कब तलक मानूँ सहारा

हास को परिहास को

 

भूलना मुश्किल बहुत है

पर असम्भव

तो नही है

नेह झूठे, और झूठे

स्वप्न के आकाश को   

*****************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2013 at 4:55pm

आदरणीय अरुण भाई , प्रथम नवगीत रचना को अपका आशीर्वाद मिला तो निश्चित मेरा  आत्म विश्वास बढा है !!! आपका बहुत बहुत आभारी हूँ !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2013 at 4:52pm

आदरणीय बडे भाई गोपाल जी , प्रथम नवगीत को आपका अनुमोदन मिला , हार्दिक प्रसन्नता हुई !!! आपका ह्र्दय से आभार !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2013 at 4:50pm

आदरणीय जीतेन्द्र भाई , प्रथम नव गीत को आशीर्वाद देने ले लिये आपका आभारी हूँ !!!!!!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 28, 2013 at 4:24pm

जय हो, आपकी बारंबार जय हो । बड़ी सुंदर रचना है । उपेक्षा एवं अपेक्षा लय को बुरी तरह ठोंक रहे हैं, इनकी जगह कुछ और देखें, सादर

Comment by Shyam Narain Verma on November 28, 2013 at 1:05pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by Arun Sri on November 28, 2013 at 12:58pm

सम्मोहित  करता हुआ बहुत सुन्दर नवगीत आदरणीय !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 28, 2013 at 12:10pm

प्रिय मित्र

भूलना ही तो असंभव है

यदि कवि ही भूल जायेगा तो

यह दर्द की नदिया कैसे बहेंगी

बहुत सुन्दर भाव् i    आपका  ह्रदय दार्शनिक है  मित्र-------- आपकी रचनाओ  में झलकता है  i

कभी  भेंट होगी  तब  बात होगी i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 28, 2013 at 7:09am

जब नज़र में

हो उपेक्षा

और अच्छे

की अपेक्षा 

क्यों न मानूँ ,आज अन्दर,

से हुये आभास को

बहुत ही सुन्दरता से अंतर की विपरीत परिस्तिथियों को अपनी रचना में समाहित किया है आपने, हृदय से बधाई आदरणीय गिरिराज जी

 

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