For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्मृति पृष्ठ ...

स्मृति पृष्ठ ...

रजनी के
श्यामल कपोलों पर
मेघों की बूंदों ने
व्यथित यादों के
पृष्ठों पर जैसे
सान्तवना का
आभासीय श्रृंगार कर डाला

दृग कलशों से
सजल वेदना
प्रीत की
पराकाष्ठा को
चेहरे की लकीरों में
शोभित करती रही

प्राण और देह में
जीवन संघर्ष चलता रहा
किसी को विस्मरण करने के
सभी उपचार
रेत की भित्ति से
ढह गए

थके नयन
आशा क्षणों की
गहन कंदराओं में
प्रतीक्षा की विफलता के प्रहारों को
सह न सके

रक्ताभ अधरों पर
तरल प्रतीक्षा क्षण
पल भर रुके
फिर
बिन प्रतीक्षा
रजनी के
तारांचल पर गिर पड़े

प्रभात ने
उन क्षणों से
अपनी मांग सजा ली
रजनी को अपने में
समाहित कर लिया
चिर प्रतीक्षित क्षण
प्रभात बन

फिर से 
एक नया
स्मृति पृष्ठ बना गए

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 586

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 16, 2017 at 4:59pm
वाह आदरणीय बहुत उत्तम भावों से परिपूर्ण कविता हुई..सादर
Comment by Sushil Sarna on May 16, 2017 at 3:46pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan    जी रचना के भावों को मान देने का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on May 16, 2017 at 3:45pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना को अपना कीमती समय देने और उसकी प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार।  आपके अमूल्य सुझाव का शुक्रिया लेकिन इसमें मुझे कोई विशेष भाव परिवर्तन नज़र नहीं आता हालांकि सुझाव सुंदर है जो भविष्य के सृजन में काम आएगा। हार्दिक आभार ।  नेट व्यवधान से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ। 

Comment by Sushil Sarna on May 16, 2017 at 3:42pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी रचना के भावों को मान देने का शुक्रिया।  नेट व्यवधान से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ। 

Comment by narendrasinh chauhan on May 10, 2017 at 5:44pm

खूब सुन्दर रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:25am

आदरणीय सुशील भाई , खूबसूरत भाव पूर्ण कविता के लिये बधाइयाँ । नीचे सम्भावित त्रुटि पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ , मेरी सलाह सही लगे तो सुधार कर लीजियेगा ।

सान्तवना का
आभासीय श्रृंगार कर डाला  
या
सांत्वना का
आभासी श्रृंगार कर डाला

रेत की भित्ति से
ढह गए

रेत की भित्ति सी
ढह गयी

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 9, 2017 at 10:29pm
Sunder bhav aadarniya Sunil Sarna ji. Hardik badhayi
Comment by Sushil Sarna on May 9, 2017 at 8:29pm

आदरणीय आशुतोष जी प्रस्तुति को अपने स्नेह से सिंचित करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2017 at 8:28pm

आदरणीय मो. आरिफ साहिब प्रस्तुति के भावों को मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2017 at 8:28pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आपकी सदा की तरह सृजन का हौसला बढ़ाती प्रशंसा का हार्दिक आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service