For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - फूल भी बदतमीज़ होने लगे // - सौरभ

2122  1212  22/112

ग़ज़ल
=====
आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये

 

केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये

 

उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?

 

फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये

 

रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ? 

 

रात होंठों से नज़्म लिखती रही 
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये .. 

 

काव्य-संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये

 

कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये
**********
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1491

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 2, 2024 at 1:08pm

आ. Saurabh Pandey सर,

एक बार फिर हड़प्पा की खुदाई से आपका एक रत्न बरामद किया है.
एक बार फिर ढेरों दाद स्वीकार करें ..
//रात होंठों से नज़्म लिखती रही // यह मिसरा उधार ले रहा हूँ...
पहले इस ज़मीन में ग़ज़ल कह चुका हूँ लेकिन अब ऊला मिसरे को ग़ज़ल बना के आप को समर्पित करने का प्रयास रहेगा .

नमन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 22, 2016 at 11:57pm

आज विलम्ब के साथ अपनी ही रचना पर आरहा हूँ. 

भाई शिज्जू शकूर जी, आत्मीय नादिर भाई, आदरणीय गोपाल नारायण जी, भाई रामबली गुप्ताजी, आदरणीय राजेश कुमारी जी, आप सबों की हौसलाअफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया. 

यह ग़ज़ल बताती है कि कैसे यह मंच तिल-तिलकर ग़ज़लग़ोई  में सहयोग करता है. 

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 11, 2016 at 6:03pm

आज मई माह की रचनाओं को खंगालते हुए आपकी इस ग़ज़ल पर नजरें टिकी रह गई। पूरे मई बाहर थी नेट पर अनुपस्थित रही। जिस वजह से ये ग़ज़ल हम से शायद रूठी रही ..खैर अब मना लिया है एक एक शब्द को छू छू  कर पढ़े। मतले से मकते तक बिलकुल नए अंदाज के अशआरों से सामना होता गया | बस क्या कहूँ तारीफ के लिए भी शब्द नहीं मिल रहे दिल से ढेरों दाद कबूल कीजिये आ० शायर सौरभ जी 

Comment by रामबली गुप्ता on May 6, 2016 at 5:06am
आदरणीय सौरभ जी शेर-दर-शेर लाज़वाब। बहुत बहुत बधाई आपको इस शानदार गज़ल के लिए
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 5, 2016 at 4:16pm
आदरणीय सौरभ जी . तगज्जुल की नवीनता बेमिसाल है. बेहतरीन . सादर .
Comment by नादिर ख़ान on May 5, 2016 at 12:22pm

रात होंठों से नज़्म लिखती रही 
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये .. 

आदरणीय सौरभ सर ग़ज़ल तो पहले से ही शानदार थी इस शेर ने चार चाँद लगा दिए। .. बहुत मुलायम शेर है सर बहुत सीखना बचा है। . 
//आपकी सदाशयता के हम सदा से काइल रहे हैं. प्रस्तुति पर आपकी अहम मज़ूदग़ी के लिए हार्दिक धन्यवाद//
ज़र्रानवाज़ी का बहुत शुक्रिया जनाब वगर्ना हम तो अपनी कम इल्मी पर खुद शर्मसार रहते हैं शायद यही घुटन सीखने की ललक बनाये हुए है कल जब नीलेश नूर साहब से सुना के उन्होंने ३०० ग़ज़ल फेंकी है, हमारे तो हाथ पाँव फूलने लगे दिल में ख्याल आया ये कहाँ आ गए हम शौक़ शौक़ में, मगर फिर ये भी ख़याल आया वीनस जी ने कहीं लिखा था जो वज़्न की गिनती करना सीख गया देर सवेर ग़ज़ल कहना भी सीख जायेगा बस इसी उम्मीद पे चल रहे हैं फिर सुधीजनों का साथ और ईश्वर (अल्लाह ) की मर्जी साथ है तो घबराना कैसा आदरणीय मैं आपसे खुलकर बातें कर पाता हूँ आपने कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है मुझे....

शुभ शुभ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 5, 2016 at 7:26am
आदरणीय सौरभ सर मेरे जेह्न में ये बात अक्सर आती है ग़ज़लों में क्या अलग कहा जाये जबकि आप सहजता से अलग कह जाते हैं बेहतरीन ग़ज़ल है सादर बधाई आपको
Comment by Samar kabeer on May 4, 2016 at 9:44pm
हुज़ूर-ए-वाला इसे कहते हैं तहरीर शनास,आपने मेरे मन की बात महसूस कर ली,वैसे तो शैर में इबहाम का भी एक खास मक़ाम है, लेकिन वज़ाहत साफ़गोई का भी थोडा पुट भी ज़रूरी होता है ।
सानी मिसरा बदलते ही शैर कहाँ से कहाँ पहुंच गया है, ये देखकर अंदर ही अंदर मसरूर हूँ,एक बार फिर से इस पूरी ग़ज़ल के लिये आपकी ख़िदमत में मुबारकबाद पेश करता हूँ,क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by दिनेश कुमार on May 4, 2016 at 7:50pm
वाह वाह वाह। क्या कहने
हार्दिक दाद हाज़िर है आदरणीय सौरभ सर जी। वाह
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2016 at 7:48pm

वाह वाह वा....मतले से आगे बढूँ तो बाकी पढूँ ...
बहुत खूब ..अब तो तरही ग़ज़ल कहना ही पड़ेगी इस ज़मीन पर ..
बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service