For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" क्या बात है वर्माजी , बड़े खुश नज़र आ रहे हैं आप , कोई लाटरी तो नहीं लग गयी इस उम्र में" |
" नहीं भाई , दरअसल अख़बार में खबर थी कि एक वृद्धाश्रम बन रहा है अपने शहर में , अब कम से कम बाक़ी जिंदगी तो अपनों में गुजरेगी "|

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 457

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 21, 2014 at 9:41pm

आभार सौरभजी..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 3:05am

आज के दौर के एक महत्त्वपूर्ण विन्दु को साझा करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय.

Comment by विनय कुमार on July 12, 2014 at 4:21pm

आभार डॉ गोपाल जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 12, 2014 at 10:51am

बहुत सुन्दर

खासकर --- बाकी जिन्दगी तो अपनों में गुजरेगी i

Comment by Shubhranshu Pandey on July 11, 2014 at 8:19pm

आदरणीय विनय जी,

सुन्दर कथा.

वर्मा जी की खुशी के पीछे की हालत और हालात को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है.

बेगाने अब अपनों से ज्यादा अपने लग रहे हैं..कथा में वर्मा जी को एक विश्वास भी है कि उनके जैसे और लोग भी उस वृद्धाश्रम में उनके साथ होंगे...इसने समाज के एक विद्रुप रुप को भी सामने रखा है...बधाई..

सादर.

Comment by विनय कुमार on July 11, 2014 at 8:18pm

बहुत बहुत आभार कि अपने सराहा राजेश जी | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 11, 2014 at 8:05pm

जब अपने संवेदन हीन हैं तो जो अपने जैसे हैं वही अपने हैं आजकल ....बहुत बढ़िया सार्थक लघु कथा अपना सन्देश देने में सफल है 

बहुत- बहुत बधाई विनय कुमार जी |

Comment by विनय कुमार on July 11, 2014 at 12:16pm

बहुत बहुत आभार शिज्जु जी एवम जीतेन्द्र जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 11, 2014 at 10:11am

वाकई आज की औलादों में संवेदनहीनता बढ़ती जा रही है बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिये

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 11, 2014 at 10:07am

लाटरी ही तो लग रही है, वरना आज का इंसान, इंसान नही रहा  आम हो गया है. :)) ...जब तक वो  कुछ दे सके या पा सको अपना , फिर .......बहुत अच्छी लघुकथाएं पढने को मिल रही है आदरणीय विनय जी आपकी कलम से . आपको बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service