For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-५४ (तरुणावस्था-१)

(आज से करीब ३२ साल पहले)

 

लगता है मुझे कोई बीमारी हो गई है. परसों पिताजी डॉक्टर के पास ले गए थे. नाक से बार बार खून आने लगा है. मां ने कहा है कि कुछ दिन मुझे नियमित रूप से दवा खानी होगी.

 

कल रात दवा खाई थी. नींद आ रही थी मगर आँख नहीं लग रही थी. देर रात बिस्तर पे करवटें बदलता रहा और सोचता रहा कि कब स्वस्थ होऊंगा. सुबह पौने छः बजे आँख खुली. ज़बरन बिस्तर से उठा, एक मदहोशी सी छाई थी. अकस्मात गुड्डी दादी के साथ हुई दुर्घटना ने सारे आलस्य को काफूर कर दिया. वो घर की निचली मंजिल के मेरे कमरे में मेरे साथ सोती हैं क्योंकि मुझे अकेले सोने में डर लगता है और पढ़ाई के लिए मेरा अकेले रहना ज़रूरी है. आज सुबह टॉयलेट जाते वक़्त वो सीढ़ियों से गिर गईं और संभव है कि उनके पैर की कोई हड्डी टूट गई है. वो दर्द से कराह रही थीं. 

 

गुड्डी दादी मेरी असली दादी नहीं हैं. वो पड़ोस के एक ग़रीब मुसलमान परिवार की वृद्धा हैं जो मेरी अपनी दादी की घरेलु काम करने वाली नौकरानी थीं. मेरी दादी के मरने के बाद भी उनका हमसे स्नेह बना रहा, खासकर मुझसे, और वो हमारे घर आया जाया करती रहीं.

 

दस-ग्यारह बजते बजते गुड्डी दादी के पाँव पे प्लास्टर चढ़ चुका था और उन्हें बिस्तर पे लिटा दिया गया. मेरा सर भी तब तक दसों दिशाओं के चक्कर काटने लगा था जबकि मन स्थिर रहना चाहता था. परिणाम स्वरुप मेरा सर अकेला ही घूमने लगा. नाश्ते में देर हो गई थी मगर फिर भी खाया नहीं गया. मुश्किल से रोटियाँ अन्दर ठूंस ली मैंने. उलटी आते आते बची. रात तक मेरा सिर निरंतर घूमता ही रहा. शायद घूमते घूमते अनंत में विलीन हो जाना चाहता हो.

 

आज रात मैंने दवा नहीं ली.

 

© राज़ नवादवी

शुक्रवार ०३/०४/१९८१

नवादा, बिहार   

 

‘मेरी मौलिक व अप्रकाशित रचना’

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on August 26, 2013 at 1:20pm

आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी, आपके विचारों एवं उत्साहवर्धन का हार्दिक आभार. 

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 4:28pm

      डायरी का अब चलन जो खतम हो रहा है तब आपकी डायरी सामने आई  कई लोगों को तो अभी इसका स्वाद पता लगा होगा

      . बहुत बहुत बधाई.आदरणीय राज़ नवादवी जी

Comment by राज़ नवादवी on August 19, 2013 at 10:11am

आदरणीय जुनेजा साहेब, आपके सुझावों एवं मंतव्य का हार्दिक स्वागत है. मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ. इस क्रम की डायरी के ज़्यादातर प्रसंग १६-२२ वर्ष की उम्र में लिखे गए तब विधाज्ञान का  कुछ बोध भी नहीं था. 

Comment by राज़ नवादवी on August 19, 2013 at 9:29am

आदरणीय आशुतोष जी, पढ़ने और आपके मंतव्य का हार्दिक स्वागत है. साभार! 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 19, 2013 at 8:11am

एक सन्देश तो डेरी के इस पन्ने में है ...जो दिलकश है ..स्नेह की कीमत तो चुकाए नहीं जा सकती किन्तु किंचित ऋण अरय्गी तो की ही जा सकती है ..सादर 

Comment by राज़ नवादवी on August 18, 2013 at 9:46pm

प्रिय नीरज मिश्राजी, १६-१७ वर्ष की वय से युवावस्था के इक पड़ाव तक लिखी आत्मनंदिनि (डायरी) प्रस्तुत करने का प्रयास करता रहूंगा. शायद कहीं या कभी आपको आपके 'और फिर..' का जवाब मिल जाए. धन्यवाद एवं शुभकामनाओं के साथ.  

Comment by Neeraj Nishchal on August 18, 2013 at 7:24pm

और फिर .............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
20 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service