दोहा सप्तक. . . . विविध
मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।
मंजिल हर सोपान की, केवल है अवसान ।।
छोटी-छोटी बात पर, होने लगे तलाक ।
पल में टूटें आजकल, रिश्ते सारे पाक ।।
छोटे से परिवार में, दो -दो हैं औलाद ।
उसमें भी होते नहीं, आपस में संवाद ।।
पति-पत्नी के प्रेम का, अजब हुआ है हाल ।
प्रेम जाल में गैर के, दोनों हुए हलाल ।।
कत्ल प्रेम में आजकल, अब होते हैं आम ।
नाता जोड़ें गैर से, फिर होते बदनाम ।।
धोखा ही धोखा मिले, प्रेम पाश में आज ।
आडम्बर में प्रेम के, लूटें दैहिक लाज ।
प्रेम नाम पर आजकल, मुश्किल है विश्वास ।
जीवित इसकी आड़ में, होती तन की प्यास ।।
सुशील सरना / 19-8-25
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