2122 2122 2122 212
.
आपकी पिछली कही मन में प्रवाहित है अभी
इसलिये तो प्रेमधारा मेरी बाधित है अभी
.
अब सदा बहती ही रहती है उपेक्षा आँखों से
मै कहाँ हूँ आपके मन में ये साबित है अभी
.…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 6, 2013 at 2:30pm — 29 Comments
Added by Ravi Prakash on December 5, 2013 at 3:30pm — 31 Comments
Added by Ravi Prakash on November 28, 2013 at 8:48pm — 15 Comments
ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
अक्षरों में खुदा दिखाई दे
अब मुझे ऐसी रोशनाई दे |
हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,
सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे |
रोशनी हर चिराग में भर दूं ,
कोई ऐसी दियासलाई दे |
माँ के हाथों का स्वाद हो जिसमें,
ले ले सबकुछ वही मिठाई दे |
धूप तो शहर वाली दे दी है,
गाँव वाली बरफ मलाई दे |
बेटियों को दे खूब आज़ादी ,
साथ थोड़ी उन्हें हयाई दे…
ContinueAdded by Abhinav Arun on November 14, 2013 at 7:45pm — 41 Comments
Added by Ravi Prakash on November 6, 2013 at 7:11pm — 15 Comments
बहुत ज्यादा भी हो, पाकीज़गी, अच्छी नहीं होती
न करना यार मेरे, ख़ुदकुशी, अच्छी नहीं होती//१
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चलो माना, के जीने के लिए, खुशियाँ जरूरी है
जरा भी ग़म न हो, ऐसी ख़ुशी, अच्छी नहीं होती//२
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भले ही, आह उट्ठे है !!, दिलों से, वाह उट्ठे है !!
मगर सुन, आँख की, बेपर्दगी अच्छी नहीं होती//३
.
तजुर्बे का, अलग तासीर है, यारों मुहब्बत में
हमेशा इश्क़ में, हो ताज़गी, अच्छी…
Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 12:19pm — 38 Comments
करूं मै क्या? मेरी आवारगी बेचैन करती है
बनूँ गर रहनुमा तो, रहबरी बेचैन करती है//१
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समंदर से सटा है घर, मगर लब ख़ुश्क है मेरा
तेरी जो याद आये, तिश्नगी बेचैन करती है//२
.
के अच्छी मौत है, इक बार ही जमकर सताती है
मुझे दिन-रात, अब ये ज़िंदगी बेचैन करती है//३
.
मुहब्बत है मुझे भी, चाँदनी की नूर से लेकिन
निगाहे-हुस्न तेरी, रौशनी बेचैन करती…
Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 18, 2013 at 5:00pm — 20 Comments
मेरे महबूब कभी मिलने मिलाने आजा !
मेरी सोई हुई तक़दीर जगाने आजा !!
तेरी आमद को समझ लूँगा मुक़द्दर अपना !
रूह बनके मेरी धड़कन मे समाने आजा !!
मैं तेरे प्यार की खुश्बू से महक जाऊगा !
गुलशने दिल को मुहब्बत से सजाने आजा !!
तेरी उम्मीद लिए बैठे हैं ज़माने से !
कर के वादा जो गये थे वो निभाने आजा !!
बिन तेरे सूना है ख़्वाबो का ख़्यालो का महल !
ऐसी वीरानगी …
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on October 17, 2013 at 9:30am — 16 Comments
फ़िदा है रूह उसी पर, जो अजनबी सी है
वो अनसुनी सी ज़बाँ, बात अनकही सी है//१
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धनक है, अब्र है, बादे-सबा की ख़ुशबू है
वो बेनज़ीर निहाँ, अधखिली कली सी है//२
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कभी कुर्आन की वो, पाक़ आयतें जैसी
लगे अजाँ, कभी मंदिर की आरती सी है//३
.
ख़फ़ा जो हो तो, लगे चाँदनी भी मद्धम है
ख़ुदा का नूर है, जन्नत की रौशनी सी है//४
.
वो…
Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 16, 2013 at 5:00pm — 20 Comments
कहाँ है कील, शर, नश्तर कहाँ है
मेरा काँटों भरा, बिस्तर कहाँ है//१
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उठा के मार, मंदिर में पड़ा ‘वो’
भला क्या पूछना, पत्थर कहाँ है//२
.
तभी सोंचू के, मैं क्यूँ उड़ रहा हूँ
अमीरों क़र्ज़ का, गट्ठर कहाँ है//३
.
लगे मय पी रहा है, आज वो भी
जहर पीता था, वो शंकर कहाँ है//४
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बुराई झाँकती है, देख दिल से
छुपा उसको, तेरा अस्तर कहाँ है//५
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सपोलें मारने से, कुछ न होगा
चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ…
ContinueAdded by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 16, 2013 at 4:30pm — 19 Comments
मेरे अल्लाह ! तू लड़की बनाना
मुझे आता नहीं, चोटी बनाना//१
.
बनाना चाहता हूँ ‘आदमी’ को
बुरा है पर, ज़बरदस्ती बनाना//२
.
मुझे इक 'माँ' लगे है, देख लूं जो
सनी मिट्टी लिए रोटी बनाना//३
.
न डूबेगा समंदर में, लहू के
शिकारी सीख ले कश्ती बनाना//४
.
चला वो, तीर-भाले को पजाने
सिखाया था जिसे बस्ती बनाना//५
.
उजालों से मुहब्बत है, मुझे भी
सिखा दे माँ मुझे तख्ती…
ContinueAdded by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 12, 2013 at 5:00pm — 33 Comments
न ज़िंदगी को सजाना, गड़े खज़ाने से
नसीब ‘राख़’ है, साँसों के रूठ जाने से//१
.
खड़े हैं क़ब्र के पत्थर-से लोग चौखट पर
जवान बेटी की इज्ज़त को यूँ गंवाने से//२
.
पकड़ के पूँछ कलाई, पे बांध लेता मैं
जो मान जाता कभी वक़्त भी मनाने से//३
.
न आफ़ताब को हो फ़िक्र तो मिटेगा क्यूँ
कोई न फ़र्क है जुगनूँ के दिल जलाने से//४
.
सुना है अश्क़ दवाई से कम नहीं होता
तो छोड़ रात में पलकों को यूँ नहाने से //५
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तुझे…
ContinueAdded by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 6, 2013 at 1:30pm — 30 Comments
ग़ज़ल –…
ContinueAdded by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 8:42am — 21 Comments
ग़ज़ल –…
ContinueAdded by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 8:39am — 39 Comments
फूल बागों में खिले ये सबके मन को भाते है
मंदिरों के नाम पर ये रोज तोड़े जाते है .
फूल माला में गुथे या केश की शोभा बने
टूट कर फिर डाल से ये फूल तो मुरझाते है
फूल का हर रंग रूप तो सुरभि भी पहचान है
फूल डाली पर खिले तो भौरों को ललचाते है
फूल चंपा के खिले या फिर चमेली के खिले
फूल सारे बाग़ के मधुबन को ही महकाते है
भोर उपवन की देखो तितली से ही गुलजार हुई
फूलों का मकरंद पीने भौरे भी मंडराते है
पेड़ पौधो से सदा…
Added by shashi purwar on October 5, 2013 at 5:00pm — 13 Comments
2122 1212 22
जुल्म को देख रहगुज़र चुप है
गाँव सारा नगर नगर चुप है
खामुशी चुप ज़ुबां ज़ुबां है चुप
दश्त चुप है शज़र शज़र चुप है
दोस्त चुप चाप दुश्मनी भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 4, 2013 at 8:00am — 39 Comments
2122 2122 2122 212
कोशिशों का अब कहीं नामों निशां रहता नहीं
हाल अपना संग है वो ,जो कभी ढहता नहीं
हादसे कैसे भी हों कितने भी हों मंज़ूर सब
ख़ून अब बेजान आंखों से कभी बहता…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 30, 2013 at 8:30pm — 38 Comments
212 212 212 212
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छांव में धूप का क्यों गुमाँ हो रहा
दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा
सड़ चुकी मान्यता सांस फिर ले रही
दिन चढ़े तक कोई शख़्स ज्यों सो रहा
ज़ाहिरन बात ये कह रहा है करम
बढ़ गया पाप जब तो कोई धो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 12:00pm — 38 Comments
आज फिर याद कई, ज़ख्म पुराने आये
धड़कने बंद करो, शोर मचाने आये//१
.
लेके मरहम न सही, हाथ में गर खंजर हो
हक़ उसी को है, मेरा दर्द बढ़ाने आये//२
.
इश्क़ में आह की दौलत के, बदौलत हम हैं
कोई तो हो जो मेरा, ज़ख्म चुराने आये//३
.
रोते-रोते ही कहा, मुझको मुआफ़ी दे दो
अश्क़ अपना जो, समंदर में छुपाने आये//४
.
कम चरागें न जलाई थी, तेरी यादों की
जल रहा दिल है, उसे कोई बुझाने आये//५
.
आशिक़ी मौत से…
ContinueAdded by रामनाथ 'शोधार्थी' on September 21, 2013 at 4:00pm — 27 Comments
ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,
माफ़ करना अगर खता की है |
राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,
चोट खायी तो ये दवा की है |
अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,
मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |
फूल तो सौ मिले हैं गुलशन में ,
खुशबुओं की तलाश बाकी है |
तुम इसे शाइरी समझते हो ,
मैंने बस राख में हवा की है |
एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,
आईनों ने ये इत्तिला…
ContinueAdded by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 4:30am — 46 Comments
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