For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाथ काटे जा चुके हैं फिर तू आंखें लाल कर ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122     2122          2122            212

कोशिशों का अब कहीं नामों निशां रहता नहीं 

हाल अपना संग है वो ,जो कभी ढहता नहीं

हादसे कैसे भी हों कितने भी हों मंज़ूर सब

ख़ून अब बेजान आंखों से कभी बहता नहीं

मेरी क़िस्मत खोज कर के थक गयी मुझको वहाँ

जिन ठिकानो पर कभी मै भूल कर रहता नहीं

मुश्किलें खुद राह देंगीं रास्ते पर आ उतर  

ताल सड़ जाता है सुन ले, जो कभी बहता नहीं

हाथ काटे जा चुके हैं फिर तू आंखें लाल कर

आग सीने में अगर हो, चुप कभी सहता नहीं

मुश्किलों से इस क़दर तू आज रंजीदा न हो

कौन ऐसा सूर्य है , राहू जिसे गहता नही

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 779

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2013 at 6:06am

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , स्नेह के लिये आपका बहुत आभार !! ऐसे ही स्नेह बनाये रखें !! पुनः आभार !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 4, 2013 at 12:37am

प्रिय गिरिराज भाई ...माह के सक्रीय सदस्य चुने जाने पर बहुत बहुत बधाई ...ये सक्रियता यूं ही बनी रहे और अपना ये मंच और समाज इस का भरपूर लाभ लेता रहे ..शुभ कामनाएं
जय श्री राधे
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2013 at 7:48am

आदरणीय सौरभ भाई , सबसे पहले तो मै आपकी पारखी नज़रों को सलाम करना चाहता हूँ !! दूर से ही आपने समझ लिया गज़ल मे मेहनत कम हुई है !!! जब पहली बार इसे पोस्ट किया तो पोस्ट करने के बाद और अप्रूवल से पहले मुझे पता  चला कि इसमे क़ाफिया का ईता दोष है , एडिट करने के लिये वापस लिया तो ईलेक्शन ड्यूटी मे जाने के लिये 15 मिनट बचा था , हडबडी मे कई शेर सुधारा और पोस्ट कर दिया !!!!आपको सब पता चल गया !!!! पारखी नज़रों के लिये आपको ढेरों दाद !!!!!

                            विस्तार से गलतियों को समझाने के लिये आपका बहुत आभार !! आगे से और मेहनत करूंगा !!

  और कम से कम गलतियाँ हो इसका प्रयास करते रहूंगा !!! सादर !!!                                                           


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 3:45am

कोशिशों का अब कहीं नामों निशां रहता नहीं
हाल अपना संग है वो ,जो कभी ढहता नहीं... . .. .मतला मुझे बहुत स्पष्ट नहीं हुआ, आदरणीय.

हादसे कैसे भी हों कितने भी हों मंज़ूर सब
ख़ून अब बेजान आंखों से कभी बहता नहीं......... वल्लाह ! खून के आँखों से टपकने या बहने को सुन्दरता से प्रयोग किया है आपने ! वाह-वाह !

मेरी क़िस्मत खोज कर के थक गयी मुझको वहाँ
जिन ठिकानो पर कभी मै भूल कर रहता नहीं.......... यह ग़ज़ल का सबसे प्यारा शेर माना जाना चाहिये. यों, ’खोज कर के’ में ’कर के’ एक ग़लत प्रयोग है जो बोलचाल में लोग प्रयुक्त भले करें लेकिन नियमतः अशुद्ध प्रयोग है.

मुश्किलें खुद राह देंगीं रास्ते पर आ उतर  
ताल सड़ जाता है सुन ले, जो कभी बहता नहीं.......... काश इस शेर पर और मेहनत हुई होती. दोनों मिसरों के मध्य राबिता कायदे से नहीं बन पारहा है.

हाथ काटे जा चुके हैं फिर तू आंखें लाल कर
आग सीने में अगर हो, चुप कभी सहता नहीं........... ..कोशिश कीजिये, आदरणीय़. यह शेर और सटीक हो सकता है.

मुश्किलों से इस क़दर तू आज रंजीदा न हो
कौन ऐसा सूर्य है , राहू जिसे गहता नही..................... क्या सांत्वना है ! बहुत सही बात भाईजी.


शुभकामनाएँ व बधाइयाँ.. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2013 at 9:53pm

आदरणीय विन्ध्येश्वरी भाई जी , गज़ल की सराहना के लिये और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार !! आदरणीय ग्रसता सच मे सही शब्द है पर काफिया मिलाने के लिये मै गहता शब्द उपयोग किया हूँ , कहता , सहता , गहता आदि ही लेना ज़रूरी था !! सही शब्द सुझाने के लिये आपका आभार !! ऐसे ही स्नेह  बनाये रखें !! सादर !!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 2, 2013 at 7:13pm
आदरणीय गिरिराज जी! आपने बहुत ही उम्दा गजल कहा है। बधाई।
अंतिम शेर में क्या //गहता// की जगह //ग्रसता// उचित नहीं होगा।क्योंकि मेरा मानना है राहु चंद्र या सूर्य को गहता (पकड़ता) नहीं बल्कि ग्रसता (निगलता) है।
अन्यथा मत लीजियेगा। यदि उचित न हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ।
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2013 at 11:18am

आदरणीया सरिता जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2013 at 11:17am

आदरणीय बडे भाई विजय जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया !!!!!

Comment by Sarita Bhatia on October 2, 2013 at 10:44am

वाह बहुत हि खुबसूरत गजल ,बधाई आदरणीय 

Comment by vijay nikore on October 2, 2013 at 5:21am

बहुत ही मनमोहक .... बहुत ही खूबसूरत गज़ल है। बधाई, भाई गिरिराज जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
11 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service